بِسْمِ اللهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِيْمِ
” शरू अल्लाह के नाम से जो सब पर मेहरबान है बहुत मेहरबान है “
एक सच्चा वाकिया –
शहरे मक्क़ा में वलीद नाम का एक काफिर रहता था ,उसके पास सोने का एक बूत (मूर्ति) था,
उसको अपना देवता मानता था और उसकी पूजा करता था,एक दिन उस बूत में हरक़त पैदा हुई और वह बोलने लगा,वलीद उसके तरफ मुतवाज़ह हुआ
वह बूत कह रहा था –
ऐ लोगों,मुहम्मद (स ० अ ०) अल्लाह के रसूल नहीं हैं,उनकी बात हरगिज़ न मानना,वलिद बहुत खुश हुआ और घर से निकल कर अपने दोस्तों से मिला और कहने लगा,मुबारक हो आज हमारा देवता बोला है और साफ़ साफ़ उस ने कहा है के मुहम्मद (स ० अ०) अल्लाह के रसूल नहीं हैं,ये सुन कर बहुत से लोग वलीद के घर आये तो उन लोगों ने भी देखा के नबी करीम (स ० अ०) खिलाफ वही बोली बोल रहा है,सब काफिर इस नए वाक़िये से बहुत खुश हुए वलिद ने एलान कराया और दूसरे दिन बहुत बड़ा मज़मा जमा हुआ।काफिरों ने नबी क़रीम (स ० अ०) को ख़बर भेजी के आप आकर हमारे देवता का बयान सुन लें,चुनांचे नबी करीम (स ० अ०) तशरीफ़ ले गए जब आप (स ० अ०) पहुंचे तो
बूत इस तरह बोलने लगा –
” ऐ मक्का वालों,खूब जान लो के नबी करीम (स ० अ०) अल्लाह के सच्चे रसूल हैं,उनका हर क़ौल सच्चा है
और उनका दीन बरहक़ है तुम और तुम्हारे बूत झूठे हैं,अगर तुम इस सच्चे रसूल पर ईमान ना लाओगे तो जहन्नम में जाओगे लेहाज़ा अकल से काम लो और इस सच्चे रसूल के गुलाम बन जाओ “
बूत का बयान सुनकर वलीद झुँझला उठा और अपने देवता को उठा कर ज़मीन पर दे मारा और उस के टुकड़े टुकड़े कर दिए।
नबी करीम (स ० अ०) से जिन्न की मुलाक़ात –
नबी करीम (स ० अ०) जब वापस तशरीफ़ लाने लगे तो रस्ते में एक सब्ज़ पोश घोड़े सवार हुज़ूर (स ० अ०) के सामने आया,उसके हाथ में तलवार थी जिससे ख़ून टपक रहा था।
हुज़ूर ने फ़रमाया तुम कौन हो ?वो बोले हुज़ूर,मै जिन्नात के क़ौम में से एक जिन्न हु और मैं आपका गुलाम और मुसलमान हूँ।तूर पहाड़ पर रहता हूँ ।मेरा नाम महीन बिन अभहर है।मै कुछ दिनों के लिए घर से बाहर गया हुआ था,आज जब मै अपने घर वापस आया तो देखा घर वाले रो रहे थे।मैंने पूछा, तुम सब क्यों रो रहे हो,उन्होंने बताया के एक काफिर जिन्न जिस का नाम मुसफिर है वह कल मक्का गया था,वहां उसने वलीद के बूत में घुस कर नबी करीम (स ० अ ० ) के ख़िलाफ़ बकवास की है और आज फिर गया है ताके बूत में घुस कर फिर से हुज़ूर (स ० अ०) के खिलाफ बकवास करे।
घर वालों से यह बात मालूम कर के मुझे उस काफिर जिन्न पर सख़्त गुस्सा आया,मैं तलवार ले कर दौड़ा और उसे रस्ते में ही क़तल कर दिया फिर आगे बढ़ कर मैं वलीद के बूत में घुस गया।या रसूल अल्लाह आज बूत से जो आवाज़ निकली है वह मेरी ही आवाज़ थीं।
हुज़ूर (स ० अ०) ने यह क़िस्सा सुन कर खुशी का इज़हार फ़रमाया और अपने उस गुलाम जिन्न के लिए दुआ फ़रमाई।
इस वाक़या से पता चलता है के सिर्फ इंसान ही नहीं बल्कि हुज़ूर पाक (स ० अ०) के दीवाने जिन्नों की जमात भी है जो आप (स ० अ०) की शान में ज़रा सी भी गुस्ताखी बर्दाश्त नहीं की और काफिर जिन्न को हलाक कर दिया।
अल्लाह हमें भी अपने नबी पाक की मुहब्बत और उनकी सुन्नतों पर अमल करने वाला बनाये – आमीन
दीन की सही मालूमात कुरआन और हदीस के पढने व सीखने से हासिल होगी |(इंशाअल्लाह)
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दुआ की गुज़ारिश
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