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Huzur s.a.w ka Mojza - हुज़ूर (स०अ०) का मुअजिज़ा

بِسْمِ اللهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِيْمِ

” शुरू अल्लाह के नाम से जो सब पर मेहरबान है बहुत मेहरबान है “

 मुअजिज़ा  लिखने का मकसद – 

 

नबी करीम (स०अ०) के चंद मुअजिज़ा का ज़िक्र है जिसको पढ़ कर हमारे प्यारे नबी (स०अ०) की अज़मत व बुज़ुर्गी  का अहसास होगा और हमारी इमानी कय्फियत में इज़ाफा होगा – इन्शाअल्लाह

 

हुज़ूर (स०अ०) का मुअजिज़ा – 

 

(1) सितारों का झुक जाना – 

हज़रत उस्मान बिन अबी अलआस (रज़ी०) की वाल्दा फरमाती हैं के मैं आप (स०अ०) की विलादत के वक़्त हाज़िर थी,जब आप (स०अ०) पैदा हुए तो मैंने देखा के सारे घर नूर से भर गया,सितारे करीब आ गए और लटक आये थे यहाँ तक के मुझे गुमान होने लगा के अब ये मुझ पर गिर पड़ेंगे |

 

(2) आप (स०अ०) का सीना चाक किया जाना – 

हज़रत अनस (रज़ी०) फरमाते हैं के (बचपन में ) रसूल अल्लाह (स०अ०) बच्चों के साथ खेल रहे थे,इतने में हज़रत जिब्रील (अ०स०) आए और आप (स०अ०) को पकड़कर ज़मीन पर लेटा दिया | फिर आप (स०अ०) के सीने को चाक कर के दिल निकाला और फिर दिल में से खून का एक लोथड़ा निकाला और फ़रमाया – ये शैतान का हिस्सा है | फिर दिल को सोने की तश्तरी में रख कर ज़मज़म के पानी से धोया और फिर दिल को बंद करके उसकी जगह वापस रख दिया | हज़रत अनस (रज़ी०) फरमाते हैं के मैं आप (स०अ०) के सीने पर उन टांकों का असर भी देखता था |(मुस्लिम) 

 

(3) चाँद के दो टुकड़े होना – 

कुफ्फारे मक्का ने रसूल अल्लाह (स०अ०) से ये दरखवास्त की के (अपनी नबूवत की ) कोई निशानी बतलाए ? तो आप (स०अ०) ने (चाँद की तरफ ऊँगली से इशारा करके) चाँद का दो टुकड़े हो जाना देखाया |(बुख़ारी ,मुस्लिम)

 

(4) दरख्त का हुजुर (स०अ०) को इत्तालाह देना – 

एक मर्तबा किसी ने हज़रत मस्रूक (र०) से पूछा के जिस रात जिन्नातों ने हुजुर (स०अ०) का कुरआन सुना था,उस रात आप (स०अ०) को जिन्नातों की हाजरी की इत्तलाह किसने दी थी ? हज़रत मस्रूक (र०) ने फ़रमाया – मुझे हज़रत अब्दुल्लाह बिन मसउद (रज़ी०) ने खबर दी है के उस रात रसूल अल्लाह (स०अ०) को जिन्नातों के बारे में एक दरख़्त ने बताया था |(बुख़ारी )

 

(5) हुज़ूर (स०अ०) के पसीने की ख़ुशबू –

हज़रत अनस (रज़ी०) फरमाते हैं – एक दिन रसूल अल्लाह (स०अ०) हमारे यहां तशरीफ़ लाए और कीलोला फ़रमाया,जब आप (स०अ०) को पसीना आया तो मेरी वालिदा एक शीशी लाईं और पसीना पोछ कर जमा करने लगीं | उस दौरान रसूल अल्लाह (स०अ०) की आँख खुल गई,आप (स०अ०) ने पूछा – उम्मे सलीम ! तुम ये क्या कर रही हो? उन्होंने अर्ज़ किया – मैं आप के पसीने को जमा कर रही हूँ, ताके हम इसे खुशबू के तौर पर इस्तमाल करें | (मुस्लिम)

 

(6) हुज़ूर (स०अ०) का आगे पीछे देखना – 

रसूल अल्लाह (स०अ०) ने फ़रमाया – तुम्हारा क्या ख्याल है के में सिर्फ सामने देखता हु ? बखुद तुम्हारा ख़ुशु-खुज़ु और रुकुह मुझ पर पोशीदा नही है ,बिला शुबा मैं अपनी पीठ के पीछे भी तुमको देखता हूँ | (बुख़ारी)

 

(7) दरख़्त और पहाड़ का सलाम करना – 

हज़रत अली (रज़ी०) बयान करते हैं के मक्की ज़िन्दगी में एक मर्तबा रसूल अल्लाह (स०अ०) मक्का के किसी इलाका की तरफ निकले तो मैं भी आप (स०अ०) के साथ हो लिया (चुनांचे मैंने देखा) के रास्ते में जिस दरख़्त और पहाड़ के करीब से गुज़रते वह रसूल अल्लाह (स०अ०) से अर्ज़ करता – ” अस्सलामो अलैका या रसूल अल्लाह ” (तिर्मिज़ी)

 

(8) खज़ूर की शाख का तलवार बन जाना – 

गजवा ए उहद में हज़रत अब्दुल्लाह बिन हज्श (रज़ी०) की तलवार टूट गई,आप (स०अ०) ने एक खज़ूर की शाख उनके हाथ में दे दिया पस वह तलवार बन गई | (बैहकी)

 

(9) हज़रत रफाआ (रज़ी०) की आँख का दुरुस्त होना – 

हज़रत रफ़ाआ(रज़ी०) फरमाते हैं – जंगे बदर में मेरी आंख में एक तीर लगा जिसकी वजह से आंख फुट गई |आप (स०अ०) ने उसपर थूक मुबारक लगा दिया और दुआ फरमाई|उसके बाद एसा हो गया जैसे मुझे कोई तकलीफ़ ही नही पहुची |(बैहकी)

 

(10) जिस्म का खुशबूदार होना –

हज़रत वाएल बिन हजर (रज़ी०) बयान करते हैं के मैंने नबी (स०अ०) से मुसाफा किया या मेरा जिस्म आप (स०अ०) के जिस्म से छु गया तो मैं अपने हाथों में तीन दिन के बाद भी मुश्क की खुशबू महसूस करता था| (तबरानी )

 

(11) हज़रत साअद (रज़ी०) के हक़ में दुआ – 

आप (स०अ०) ने हज़रत साअद (रज़ी०) के हक़ में दुआ फरमाई – ए अल्लाह ! साअद की दुआ कुबूल फरमा | (इसका असर ये हुआ के हज़रत साअद (रज़ी०) जो दुआ मांगते थे वह क़ुबूल हो जाती थी (तिर्मिज़ी )

 

(12) आप (स०अ०) के कुरते की बरकत – 

हज़रत उसमा बिन्ते अबी बक्र (रज़ी०) के पास आप (स०अ०) का एक कुरता था |मदीना में जो भी बीमार होता,उस कुरते को धो कर बीमारों को उसका पानी पिलातीं और बीमारों के बदन में उसको लगातीं तो उसे शिफा हासिल हो जाती | (मुस्लिम)

 

(13) हज़रत उमर (रज़ी०) के हक़ में दुआ –  

रसूल अल्लाह (स०अ०) ने हज़रत उमर (रज़ी०) के लिए दुआ फरमाई के ए अल्लाह ! उमर बिन ख़त्ताब के ज़रिये इस्लाम को इज्ज़त और बुलंदी अता फरमा | चुनांचे एसा ही हुआ के अल्लाह तआला ने इस्लाम को हज़रत उमर (रज़ी०) के ज़रिये वह बुलंदी और शौक़त अता फरमाई के दुनिया इसका एतेराफ करती है | (इब्ने माज़ा)

 

(14) हाथ से खुशबू निकलना – 

हज़रत उम्मे सलमा (रज़ी०) फर्मतीं हैं के जिस दिन रसूल अल्लाह (स०अ०)  की वफात हुई|उस दिन मैंने हुजुर (स०अ०) के सीने मुबारक पर हाथ रखा था | उसके बाद एक ज़माना गुज़र गया,मैं इस हाथ से खाती और इसको धोती रही लेकिन मेरे इस हाथ से मुश्क की खुशबू ख़तम नहीं हुई | (बैहकी)

 

(15) कुँवे से मुश्क की खुशबू आना – 

रसूल अल्लाह (स०अ०) के पास एक डोल पानी लाया गया |आप (स०अ०) ने उसमे से पिया फिर कुँवे में कुल्ली कर दी,जिसके बाद कुंवे से मुश्क जैसी खुशबू आने लगी | (बैहकी)

 

(16) बेहोशी से शिफा पाना – 

हज़रत जाबिर (रज़ी०) फरमाते हैं के एक मर्तबा मैं शख्त बीमार हुआ तो रसूल अल्लाह (स०अ०) और हज़रत अबू बक्र सिद्दीक (रज़ी०),दोनों हज़रात मेरी इयादत को तशरीफ़ लाए|यहाँ पहुच कर देखा के मैं बेहोश हूँ | तो आप (स०अ०) ने पानी मंगवाया और उससे वजू किया और फिर बाकी पानी मुझ पर छीरका ,जिससे मुझे अफाक़ा हुआ और मैं अच्छा हो गया | (मुस्लिम ) 

 

(17) चाँद का झुक जाना – 

हज़रत अब्बास (रज़ी०) फरमाते हैं – मेरे इस्लाम लाने का सबब ये हुआ के जिस वक़्त आप (स०अ०) बचपन में झूले में आराम फरमा रहे थें,तो मैंने देखा के आप (स०अ०) ऊँगली से चाँद की तरफ इशारा करते,तो चाँद भी उसी तरफ झुक जाता | (बैहकी)

 

(18) जख्म का अच्छा हो जाना – 

यजीद बिन अबी अबीद (रज़ी०) फरमाते हैं – मैंने हज़रत सलमा बिन अकुह (रज़ी०) की पिंडली में जख्म का निशान देखा,तो मैंने उनसे पूछा – ये कैसा जख्म है ? उन्होंने फ़रमाया – यह चोट मुझे खैबर के दिन लगी थी और वह जख्म भी एसा था के लोग कहने लगे के सलमा शहीद हो गया |मैं रसूल अल्लाह (स०अ०) की खिदमत में आया तो रसूल अल्लाह (स०अ०) ने उस चोट पर तीन मर्तबा दम किया (अल्हुम्दुलिल्लाह) एसा अच्छा हो गया के अब तक शिकायत नही हुई|(बुख़ारी )

 

(19) गूंगापन ख़तम होना – 

रसूल अल्लाह (स०अ०) की खिदमत में एक लड़का लाया गया |ये लड़का पैदाइशी गूंगा था,आप (स०अ०) ने उससे पूछा – ज़रा इतना बता के मैं कौन हूँ ? उसने जवाब दिया – आप (स०अ०) अल्लाह के रसूल हैं (और उसी वक़्त से बातें करने लगा ) ( बैहकी )

 

(20) टूटे हुए पैर का ठीक होना – 

हज़रत अब्दुल्लाह बिन अतीक (रज़ी०) जब अबू रफेह को क़त्ल करके वापस आने लगे तो सीढ़ी (ज़ीना) से उतरते हुए गिर पड़े और पैर टूट गया | रसूल अल्लाह (स०अ०) ने उस पर अपना दस्ते मुबारक फेरा तो फ़ौरन एसा अच्छा हुआ,गोया कभी टूटा ही न था | (बुख़ारी ) 

 

(21) फ़तह की पेशनगोई – 

रसूल अल्लाह (स०अ०) ने खैबर के दिन फ़रमाया – कल इस झंडे को मैं एसे शख्स के हवाले करूँगा,जिस से अल्लाह और उसके रसूल मुहब्बत करते हैं और जिस के हाथ पर अल्लाह तआला फ़तह देगा |दुसरे दिन आप (स०अ०) ने हज़रत अली बिन अबी तालिब (रज़ी०) को बुला कर झंडा उनके हाथ में दे दिया फिर उसी रोज़ अल्लाह तआला ने खैबर फ़तह कर दिया (बुख़ारी )

 

(22) एक मुनाफ़िक़ की मौत की ख़बर देना – 

रसूल अल्लाह (स०अ०) एक सफ़र से वापस मदीना तशरीफ़ ला रहे थे |जब मदीने के करीब पहुचे तो एक शख्त हवा चली,उस वक़्त रसूल अल्लाह (स०अ०) ने फ़रमाया – ये हवा एक मुनाफ़िक़ की मौत के लिए चली है | चुनांचे जब मदीना पहुचे तो मालूम हुआ के एक बड़ा मुनाफ़िक़ मर गया | (मुस्लिम) 

 

(23) पत्थर का हुजुर (स०अ०) को सलाम करना – 

रसूल अल्लाह (स०अ०) नबूवत के बाद फ़रमाया करते थे – मैं मक्का के उस पत्थर को अभी भी जनता हूँ जो मुझे नबूवत से पहले सलाम किया करता था | (मुस्लिम )

 

(24) पहाड़ का हिलना – 

रसूल अल्लाह (स०अ०) एक मर्तबा उहद पहाड़ पर चढे,आप (स०अ०) के साथ हज़रत अबू बक्र,उमर और उस्मान (रज़ी०) भी थे | वह पहाड़ हिलने लगा,रसूल अल्लाह (स०अ०) ने पहाड़ पर अपना पावं मार कर फ़रमाया – ए उहद ! ठहर जा | तुझ पर एक नबी,एक शिद्दीक और दो शहीद हैं | तो वह ठहर गया (बुख़ारी )

 

(25) खज़ूर के गुच्छे का चलना – 

एक देहाती,रसूल अल्लाह (स०अ०)  की खिदमत में आया और कहा के मुझे कैसे यकीन आये के आप नबी हैं ? आप (स०अ०) ने फ़रमाया – अगर मैं उस खजूर के खोशा(गुच्छा ) को बोला लूँ तो मेरे नबी होने को मान लोगे ? उसने कहा हाँ |आप (स०अ०) ने उस गुच्छे को बुलाया,वो दरख़्त से उतर कर रसूल अल्लाह (स०अ०) के पास आया और आप (स०अ०) के हुक्म से वापस चला गया |देहाती फ़ौरन इस मुआजिज़े को देख कर ईमान ले आया | (तिरमिज़ी )

 

(26) चेहरा ए अनवर की बरकत से सुई मिल गई – 

हज़रत आयशा सिद्दीका (रज़ी०) बयान करतीं हैं के मैं आप (स०अ०) के कपडे सी रही थी पास मेरे हाथ से सुई गिर गई,बहुत तलाश की मगर न मिली |इतने में रसूल अल्लाह (स०अ०) दाखिल हुए तो आप (स०अ०) के चहरे अनवर की रौशनी से सुई नज़र आ गई (तारिक दमिश्क )

 

(27) सख्त चट्टान का नरम होना – 

जंगे खंदक में खुदाई के दौरान एक शख्त चट्टान निकल आई,लोगों ने आप (स०अ०) से उसके न टूटने की शिकायत की आप (स०अ०) ने पानी का एक बर्तन मंगवाया और उसपर छिड़क दिया |चुनांचे जो लोग वहां मौजूद थे वह कहते हैं -उस ज़ात की क़सम जिसने आप (स०अ०) को नबी बनाकर भेजा, वह चट्टान नर्म हो गई और फिर हुजुर (स०अ०) ने तीन ज़रबें लगाईं जिससे चट्टान टुकड़े टुकड़े होकर बिलकुल रेत के टीले की तरह बिखर गई | (मसनदे अहमद ) 

 

(28) रौशनी का तेज़ होना – 

हज़रत आयशा (रज़ी०) फरमाती हैं के आप (स०अ०) अंधेरे में इस क़दर देखते थें,जिस तरह रौशनी और उजाले में देखते थें (बैहकी) 

 

(29) सूरज का लौटना – 

हुज़ूर (स०अ०) पर जब वहीह नाजिल होती तो आप (स०अ०) की एसी हालत हो जाती के अभी गश्की तारी हो जाएगी |चुनांचे आप (स०अ०) पर एक मर्तबा वहीह नाजिल होना शुरू हुई|आप (स०अ०) का सर मुबारक हज़रत अली (रज़ी०) के रान पर था,कुछ देर बाद आप (स०अ०) ने हज़रत अली (रज़ी०) के रान से सर मुबारक उठाया और हज़रत अली (रज़ी०) से पूछा – क्या तुमने असर की नमाज़ पढ़ी ? जवाब दिया के नहीं|आप (स०अ०) ने बारगाहे रब में दुआ की,चुनांचे हज़रत असमा (रज़ी०) फरमाती हैं के मैंने देखा अफताब गुरुब हो चूका था लेकिन फिर  निकल आया और हज़रत अली (रज़ी०) ने नमाज़ अदा की | (तबरानी )

 

(30) ऊँट का आप (स०अ०) से शिकायत करना – 

एक दफ़ा रसूल अल्लाह (स०अ०) एक अंसारी के बाग़ में तशरीफ़ ले गए |वहां एक ऊंट खड़ा था,रसूल अल्लाह (स०अ०) को देखकर बिलबिलाने लगा और उसके दोनों आँखों में आंसू डबडबा आएं|रसूल अल्लाह (स०अ०) ने करीब जाकर उसके सर और कनपट्टी पर हाथ फेरा,तो वह चुप हो गया |आप (स०अ०) ने दरयाफ्त किया के ये किसका ऊंट है ? तो एक नौजवान सहाबी आये,आप (स०अ०) ने उनसे फ़रमाया – क्या तुम उन जानवरों के बारे में अल्लाह से नही डरते ? जिनको खोदा ने तुम्हारे ताबेह किया है | उस ऊंट ने मुझसे शिकायत की है के तुम उसको भूखा रखते हो और उसको तकलीफ़ देते हो |(अबू दाऊद )

 

 

दीन की सही मालूमात  कुरआन और हदीस के पढने व सीखने से हासिल होगी |(इंशाअल्लाह)

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दुआ की गुज़ारिश 

 

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بِسمِ اللہِ الرَّحمٰنِ الرَّحِيم ” शुरू अल्लाह के नाम से जो सब पर मेहरबान है बहुत मेहरबान है ”   शबे मेराज के बारे में – अल्लाह तआला ने नबी करीम (स०अ०)  को एक ख़ास सफर कराया के मक्का से मस्जिद ए अक्सा और फिर सात आसमानों से गुजर कर सिद्रातुल मूनताहा से होते हुए अपने पास बुलाया । यह आप (स०अ०)  के लिए खास एजाज व सआदत की बात है। इसके मुतल्लिक कुरान में जिक्र – سُبْحَـٰنَ ٱلَّذِىٓ أَسْرَىٰ بِعَبْدِهِۦ لَيْلًۭا مِّنَ ٱلْمَسْجِدِ ٱلْحَرَامِ إِلَى ٱلْمَسْجِدِ ٱلْأَقْصَا ٱلَّذِى بَـٰرَكْنَا حَوْلَهُۥ لِنُرِيَهُۥ مِنْ ءَايَـٰتِنَآ ۚ إِنَّهُۥ هُوَ ٱلسَّمِيعُ ٱلْبَصِيرُ ١ तर्जुमा – पाक है वहज़ात जो अपने बन्दे को रातों रात मस्जिदे हराम से मस्जिदे अक्सा तक ले गई जिसके माहौल पर हमने बरकतें नाज़िल की हैं | ताके हम उन्हें अपनी कुछ निशानियाँ देखाएं | बेशक वह हर बात सुनने वाली, हर चीज़ देखने वाली ज़ात है | मेराज के सफर का आगाज़ – नबी करीम (स०अ०)  हजरत उम्मे हानी के घर तसरीफ फरमा थे । अचानक आप ने देखा के ऊपर छत फटी और दो आदमी आए, आप को उठाया और आपका सीना चाक किया और सोने की तश्त पर कल्ब को रखा  फिर ज़म-ज़म

Kon log roza Tod sakte hain - रोजा तोड़ने की इजाज़त

بِسمِ اللہِ الرَّحمٰنِ الرَّحِيم ” शुरू अल्लाह के नाम से जो सब पर मेहरबान है बहुत मेहरबान है ” अल्लाह ताआला का बंदों पर अहसान – अल्लाह तआला अपने बंदों पर बड़ा शफीक वा मेहरबान है। उसने अपनी रहमत से इंसानों को ऐसी ही चीजों का मोकल्लफ बनाया है जि से बा-आसानी अंजाम दे सके। अल्लाह तआला ने अपनी मेहरबानी व रहमत से बाज ऐसे लोगों को रमजान में रोजा तोड़ने की इजाज़त दी है । जिनको कोई ऐसा शरई उज्र लाहिक हो जिसकी वजह से उनके लिए रोजा रखना दुश्वार हो | कुरान मजीद में इर्शदे बारी तआला  – अल्लाह तआला किसी जान को उसकी ताकत से ज्यादा तकलीफ नहीं देता (सुरह बकरह)   जिन लोगों को रोज़ा तोड़ने की इज़ाज़त है वो ये हैं – (1) बड़े बूढ़े और दाइमुल मरीज़ – बहुत बूढ़े मर्द, बूढ़ी औरतें और ऐसे दाइमूल मरीज लोग जिनके सेहतमंद होने की उम्मीद खत्म हो चुकी है। यह लोग अगर रोजा रखने में दुश्वारियां और परेशानी महसूस करें और यह अंदाजा हो कि आइंदा कभी भी उन्हें रोजा क़जा करने की ताकत हासिल ना हो सकेगी तो शरीयत ने ऐसे लोगों को रुखसत दी है कि वह रोजा ना रखें और हर रोजा के बदले एक मिस्कीन को खाना खिलाएं । उन्हें क़जा करने  की जरू

hazrat Musa a.s ka qissa - क़िस्सा हज़रत मूसा अ०स०

بِسمِ اللہِ الرَّحمٰنِ الرَّحِيم ” शुरू अल्लाह के नाम से जो सब पर मेहरबान है बहुत मेहरबान है ”     हज़रत मूसा (अ०स०) – हज़रत मूसा (अ०स०) अल्लाह के मुखलिस पैगंबर हैं | उनका लक़ब कलीमुल्लाह है, क्युकि वह अल्लाह तआला से हम-कलाम करते थे | आप (अ०स०) के वालिद का नाम इमरान (अ०स०) और भाई का नाम हारुन (अ०स०) था | आप में ताक़त और कुव्वत 10 आदमियों के बराबर थी |   हज़रत मूसा (अ०स०) के पैदाइश से पहले – मूसा (अ०स०) के पैदाइश से पहले एक मगरूर और ज़ालिम बादशाह था जिसका नाम वलीद बिन मुश्अब (फिरौन) था, बनी इस्राईल के कौम पर ज़ुल्म व सितम करता था और उनकों गुलामों की तरह काम लेता था | फिरोन को मानने वाले खिब्ती कहलाते थे और वो एश व आराम की ज़िन्दगी गुज़ारा करते थे | एक रोज़ फिरौन ने खवाब देखा के बैतूल मुक़द्दस से मिस्र के जानिब एक आग बढ़ता चला आ रहा है, वो आग तमाम मिस्र वालों को जला डालता है मगर इस आग से बनी इस्राईल के घर मज्फुज़ रहते हैं | फिरौन ने इस खवाब की ताबीर अपने पास मौजुद कहिनों से पूछी तो उन्होंने बताया के बनी इस्राईल में एक एसा बच्चा पैदा होने वाला है जिसकी वजह से मिस्रियों (खिब्तियों) की हलाकत होगी |  

Khajur(Dates) ke Fayde – खजूर के फ़ायदे

بِسمِ اللہِ الرَّحمٰنِ الرَّحِيم ” शुरू अल्लाह के नाम से जो सब पर मेहरबान है बहुत मेहरबान है ”   खजूर (Dates) – अल्लाह तआला ने हमें बेशुमार नेमतें से नवाज़ा है, उन नेमतों में से खजूर एक अहम्  नेमत है जिसका ज़िक्र हदीसों में कसरत से आया है | नबी करीम (स०अ०) के ज़माने में कसरत से खजूर के बागात हुआ करतीं थीं | ये नबी करीम (स०अ०) की दुआओ का सिला है के उस ज़माने से आज भी अरब में कसरत से पुरे साल खजूरों की खेती होती है और कभी कमी ना आई |   इसके मुताल्लिक हदीस – हज़रत साद बिन अबी वक्कास (रज़ी०) से मय्सर है के वह अपने वालिद गरामी से रिवायत करते हैं के नबी (स०अ०) ने फ़रमाया – जिस शख्स ने निहार मुह अज्वा खजूर के सात दाने खाए उसको उस दिन में ना तो किसी ज़हर से और ना किसी जादू से नुक्सान पहुंचेगा | (मुस्लिम ,अबू दाऊद) उपर के हदीस में मसनदे अहमद ने इजाफा किया है के – और अगर उसने ये खजूरें शाम को खाई तो किसी चीज़ से सुबह तक कोई नुक्सान नहीं होगा |   खजूर के फायदे – (1) खजूर में ज्यादा मिकदार में पोटाशियम होता है जो के बदन की कमज़ोरी में बहुत फायदेमंद है | रोज़ाना एक खजूर का दूध के साथ खाना बदन की कमज़ोरी को

Aulad ki tarbiyat – औलाद की तरबियत कैसे करें

بِسمِ اللہِ الرَّحمٰنِ الرَّحِيم ” शुरू अल्लाह के नाम से जो सब पर मेहरबान है बहुत मेहरबान है ”     औलाद की तरबियत – औलाद की तरबियत करना माँ-बाप की अहम् ज़ोम्मेदारी है | ये बात भी काबिले एतेबार है के अगर घर की ख़वातीन या माँ दीनदार है तो इंशाअल्लाह बच्चे ज़रूर दीनदार होंगे क्यूंकि बच्चों की असल दर्सगाह माँ की गौद है | जैसा उसके घर का माहौल होगा तो बच्चे ज़रूर उसमे ढालेंगे अगर माँ-बाप ही नए माहौल के हों तो बच्चे का दीनदार होना मुश्किल है |   अल्लाह तआला का इरशाद – يَـٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُوا۟ قُوٓا۟ أَنفُسَكُمْ وَأَهْلِيكُمْ نَارًۭا وَقُودُهَا ٱلنَّاسُ وَٱلْحِجَارَةُ عَلَيْهَا مَلَـٰٓئِكَةٌ غِلَاظٌۭ شِدَادٌۭ لَّا يَعْصُونَ ٱللَّهَ مَآ أَمَرَهُمْ وَيَفْعَلُونَ مَا يُؤْمَرُونَ तर्जुमा – ए ईमान वालों ! अपने आप को और अपने घर वालों को उस आग से बचाओ जिसका इंधन इंसान और पत्थर होंगे उसपर शख्त कड़े मिजाज़ के फरिश्तें मुक़र्रर हैं जो अल्लाह के किसी हुक्म में उसकी नाफ़रमानी नहीं करते, और वही करते हैं जिसका उन्हें हुक्म दिया जाता है | (सुरह तहरिम आयत 6) इसके मुताल्लिक हदीस – नबी करीम (स०अ०) ने इरश