بِسمِ اللہِ الرَّحمٰنِ الرَّحِيم
” शुरू अल्लाह के नाम से जो सब पर मेहरबान है बहुत मेहरबान है”
जंग ए बदर –
जंग ए बदर इस्लामी तारिख की एक अहम् जंग है, जिस जंग में मुसलमानों की तादात बहुत थोड़ी और कुफ्फार की तीन गुना जायेद थी मगर अल्लाह तआला ने अपने फरिश्तों से इस जंग में मुसलमानों की मदद फरमाई और फतह हासिल हुई |
जंग से पहले का हाल –
जब नबी करीम (स०अ०) हिजरत करके मक्के से मदीने तशरीफ़ लाए तो मक्का के कुफ्फार को बहुत नागवार गुज़रा और इस बात की कोशिश करने लगे के कैसे मुसलमानों से इन्तकाम लिया जाये | एक वजह यह भी थी के क़ुरैश के एक शख्स उमरू बिन ह्जरमी, मुसलमानों के हांथों मारा गया था और इसी का बहाना बनाकर कुफ्फारे मक्का जंग करने के लिए आमादा थे |
नबी करीम (स०अ०) तक ये खबर पहुंची के मक्के वालों का एक काफ्ला शाम से आ रहा है और मदीने के करीब से गुजरेगा तो आप (स०अ०) ने मक्के वालों पर एक किस्म का रौब कायम करने के लिए मुहाजरीन और अंसार की एक जमाआत को रवाना फ़रमाया के मक्का वालों के काफले को रोके | ये जमाअत जंग के इरादे से नहीं भेजी गई थी इसलिए कोई जंगी सामान नहीं रखी गई थी | किसी तरह इस जमाअत की रवानगी का मालूम उस काफिले को हो गई |
उस काफिले के अमीर अबू सुफियान (जो फतह मक्का के मौके पर मुसलमान हुए) थे | खबर पाते ही अबू सुफियान ने अपने काफिले को दुसरे रास्ते से मक्के की तरह बढ़े और साथ ही एक शख्स को मक्के के तरह तेज़ रफ़्तार से भेजा ताके कोई मदद मिल सके | मक्के में जब ये खबर मिली तो अबू जहल फ़ौरन एक हज़ार की फौज़ तैयार की और रवाना हुआ | इधर अबू सुफियान दुसरे रास्ते से अपने काफले के साथ मक्का पहुच गए और अबू जहल को खबर भेजी के वापस आ जाये लेकिन अपने लश्कर के खमंड और मुसलमानों के इंतकाम की वजह से वापस न हुआ और मदीने के तरफ बढ़ता रहा |
नबी करीम (स०अ०) का मशवरा –
जब नबी करीम (स०अ०) को इस बात की खबर हुए के कुफ्फारे मक्का अपने लश्कर के साथ मदीने की तरफ बढ़ रहे हैं, तो आप ने अंसार और मुहाजिरीन सहाबा (रज़ी०) के साथ मशवरा किया और राए मालूम की |
हज़रत अबू बकर सिद्दीक (रज़ी०),हज़रत उमर (रज़ी०) और मिकदार (रज़ी०) बड़ी ही बहादुरी और सुजाअत से जवाब दिया और कहा के –
हम उन बनी इसराइल की तरह नहीं हैं जिन्होंने मूसा (अ०स०) से कह दिया था के “ तू और तेरा रब दोनों जाकर लड़ो | हम तो यहीं बैठे तमाशा देखेंगे “
गोया के तमाम सहाबा (अंसार और मुहाजरीन ) जंग और कुफ्फर से मुकाबले के लिए तैयार थे |
जंग में कुल लश्कर की तादात –
मुसलमान –
जंग में मुसलमानों की तादात बाज़ रिवायतों में 313 और बाज़ में 310 आया है | 2 घोड़े , 70 ऊंट और जंगी सामान की तादात बहुत कम थी,जमाअत में कमज़ोर और ज़ईफ़ भी थे |
कुफ्फार –
कुफारे मक्का की तादात तक़रीबन एक हज़ार थी | 300 घोड़े, 700 ऊंट और लडाई में पेश आने वाले सारे चीजों से लैश थे |
आगाज़ ए जंग –
17 रमज़ान सन 2 हिजरी का दिन जब बदर के मैदान में जंग का आगाज़ हुआ | सहाबा (रज़ी०) की जमाअत भले ही कम थी लेकिन जोश व ख़रोश में कुफ्फार से कहीं ज्यादा थी |
नबी पाक (स०अ०) ने अल्लाह तआला से रोकर दुआ फरमाई –
” इलाही ! अगर तूने इस छोटी सी जमाअत को हलाक़ कर दिया तो ज़मीन में तेरी इबादत करने वाला कोई ना रहेगा “
फिर आप (स०अ०) ने दो रकात नमाज़ पढी और झोपड़ी से मुस्कुराते हुए बहार आये और सहाबा (रज़ी०) से ख़िताब होकर फ़रमाया – कुफ्फार की फौज़ को शिक़स्त होगी और वह पीठ फ़ेर कर भाग जायेंगे और आपने ये हुक्म दिया के जंग में इब्तदा न करना |
जंग की शुरुवात इस तरह हुई के उत्बा व शैबा और वलीद बिन उत्बा निकल कर मैदान में आगे आये और ललकार कर मुसलमानों के तरफ् से तीन शख्स तलब किये | उन तीनो का मुकाबला करने के लिए अंसार के तीन सहाबी रवाना हुए मगर उत्बा ने ये कहकर लड़ने से मना कर दिए के तुम मदीने वाले हो हम तो सिर्फ क़ुरैश (जो हिजरत करके आये हैं ) उन लोगों से ही लड़ेंगे |
उत्बा, शैबा और वलीद का क़त्ल –
उत्बा की बात सुनकर नबी करीम (स०अ०) ने हुक्म दिया के उत्बा के मुकाबले के लिए हमज़ा बिन अब्दुल मुताल्लिब (रज़ी०) और शैबा के मुक़ाबले उबैदा बिन हर्श (रज़ी०) और वलीद के मुकाबले अली बिन अबी तालिब (रज़ी०) जाएं, चुनांचे ये हुक्म सुनते ही तीनो हज़रात मैदान में निकले |
मुकाबला शुरू हुआ, हज़रत अली (रज़ी०) ने उत्बा और वलीद दोनो बाप-बेटे को एक ही वार में क़त्ल कर दिया शैबा के मुकाबले में उबैदा (रज़ी०) ज़ख़्मी हुए,ये देख कर हज़रत अली (रज़ी०) आगे बढ़कर शैबा को भी क़त्ल कर दिया |
इसके बाद कुफ्फार के बाक़ी जमाअत भी हमलावर हो गई, जवाब में मुसलमानों की भी जमाअत उनपर टूट पडी | बाज़ रवायतों में आता है के नबी करीम (स०अ०) ने सहाबा (रज़ी०) से फ़रमाया – जिब्रील (अ०स०) एक शख्स की शक्ल में बड़ी बहादुरी से लड़ रहे हैं |
कुछ ही देर में कुफ्फार के 70 से ज्यादा लोग क़त्ल हुए और ये सब देख कुफ्फार एक जमाअत वापस भाग खड़ी हुइ |
एक सहाबी (रज़ी०) की खवाइश –
एक सहाबी अमीर बिन अल – हमाम अंसारी (रज़ी०) नबी करीम (स०अ०) के पास खजूर खाते हुए आये और पूछा के अगर मैं कुफ्फार से लड़ता हुआ मारा जाउं तो फ़ौरन जन्नत में चला जाउंगा ? आप (स०अ०) ने फ़रमाया – हाँ ! वह उसी वक़्त अपने हाथ से बकिया खजूर फ़ेक कर तलवार खीच कर दुश्मनों पर जा पढ़े और लड़कर शहीद हुए |
अबू जहल का खात्मा –
एक नौउम्र अंसारी मुआज़ बिन उमरू (रज़ी०) का मुकाबला अचानक अबू जहल से हो गया | मुआज़ बिन उमरू (रज़ी०) ने मौका पाकर उसके पैर पर तलवार से एसा वार किया के उसका एक पावं कटकर अलग जा गिरा | ये देख अबू जहल का बेटा अपने बाप को बचाने आगे आया और मुआज़ (रज़ी०) को अख्मी कर दिया | इसके बाद अंसार के ही एक दुसरे नौ उम्र सहाबी (रज़ी०) ने अबू जहल के करीब जा के अपने तलवार से एक एसी जर्ब लगाई के वह लहूलुहान हो कर गिर पड़ा |
बाद मे जब मुसलमानों को फतह हासिल हुए तो आप (स०अ०) ने हुक्म दिया के अबु जहल की लाश तलाश करो तो हज़रत अब्दुल्लाह बिन मसउद (रज़ी०) ने अबू जहल को तलाश करते हुए देखा के वह कहीं पड़ा है तो उसके सीने पर चढ़ गए और सर काटकर नबी करीम (स०अ०) के खिदमत में पेश किया |
जंग में शहादत –
जंग ए बदर में कुल 14 सहाबा (रज़ी०) शहीद हुए, जिनमे 6 मुहजरीन और 8 अंसार थे | शहीदों को वहीँ दफ़न किया गया |
दीन की सही मालूमात कुरआन और हदीस के पढने व सीखने से हासिल होगी |(इंशाअल्लाह)
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दुआ की गुज़ारिश
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