بِسمِ اللہِ الرَّحمٰنِ الرَّحِيم
” शुरू अल्लाह के नाम से जो सब पर मेहरबान है बहुत मेहरबान है”
रोज़े के दौरान का वक़्त –
रमज़ान का हर वक़्त क़ीमती है | पुरे महीने में अल्लाह रब्बुल इज्ज़त का इनाम व इकराम
रोज़दारों पर बारिश की तरह बरसता है | इस महीने में कोई भी वक़्त खली नहीं गुज़ारनी चाहिए क्युकि इस महीने में नाकियों का सवाब 70 गुना बढ़ा दिया जाता है |
रोज़े का वक़्त किस तरह गुजारें –
रोज़े में क्या इबादात करें और कैसे गुजारें, वो ये हैं –
(1) कुरआन मजीद की तिलावत की कसरत करें, नबी करीम (स०अ०) हज़रत जब्रील (अ०स०) के हमराह कुरआन मजीद की तिलावत फरमाते थे |
(2) नवाफिलों व इज्कार में खूब इज़ाफा करें |
(3) किसी मुसलमानों की ज़रुरियात की फ़िक्र करें और परेशानों की मदद करें |
(4) खुद भी किसी को तकलीफ़ न पहुचाएं और अगर कोई तकलीफ पहुचाये तो सब्र करें |
(5) फुजूल बातों में वक़्त जाया नहीं करनी चाहिए मसलन किसी की गीबत,चुगली ,झूठ, ना – महरम लड़की/लड़के से बात करना, टीवी देखना और बिला उज्र दिन रात मोबाइल में लगे रहना वगैरह |
(6) तौबा अस्तगफार की खूब कसरत करनी चाहिए |
(7) पहला और तीसरा कालिमा की कसरत से ज़बान पर विरद हो |
(8) रातों में तरावी का अह्तमाम हो और कुरआन का तरावी में सुनना बेहतर है, अगर मुमकिन नहीं तो सुरह तरावी पढ़े लेकिन तरावी जरूर पढ़े क्युकि बाज़ रिवायतों में तरावी में हर सजदे पर एक हज़ार नेकियाँ मिलती हैं |
(9) रमजान में तीन अशरा दस – दस दिनों का है और हर अशरे की अलग अलग दुआ है | पहला अशरा रहमत का –अल्लाह तआला से रहमत की दुआ हो, दुरसा अशरा मगफिरत का – अल्लाह रब्बुल इज्ज़त से खूब मगफिरत की दुआ करनी चाहिए और आखरी अशरा जहन्नुम से आज़ादी का है – यानी अल्लाह तआला से जहन्नुम से बचने की दुआ करें |
पहले अशरे की दुआ –
رَبِّ اغْفِرْ وَارْحَمْ وَأَنْتَ خَيْرُ الرَّاحِمِين َ
तर्जुमा – ए मेरे रब मुझे बख्श दे , मुझ पर रहम फरमा, तू सबसे बेहतर रहम फरमाने वाला है
दुसरे अशरे की दुआ –
اَسْتَغْفِرُ اللہَ رَبِّی مِنْ کُلِّ زَنْبٍ وَّ اَتُوْبُ اِلَیْہِ
तर्जुमा – मैं अल्लाह से तमाम गुनाहों की बक्शीशमांगता हूँ जो मेरा रब है और उसी की तरफ रुजुह करता हूँ
तीसरे अशरे की दुआ –
اَللَّهُمَّ أَجِرْنِي مِنَ النَّارِ
तर्जुमा – ए अल्लाह ! मुझे आग /जहन्नुम से बचा
(10) रमजान के महीने में कुछ अहम् ताक रातें है जो की शबे – कद्र है | शबे कद्र की बड़ी फ़ज़ीलत कुरआन और हदीसों में आई है, ये हज़ार महीनों से अफज़ल है | इन ताक़ रातों में ज़ाग कर अल्लाह तआला की इबादत करनी चाहिए और अगर शबे कद्र हासिल हो गई तो एक रात जागने पर कम से कम 83 साल इबादत का सवाब है |
(11) इस महीने में ख़ास नवाफिल नमाज़ों यानी (इशराक, चास्त, अव्वाबीन और तहज्जुद) का अह्तामाम करनी चाहिए |
(12) मुमकिन हो तो आखरी अशरे का एतकाफ ज़रूर करें, एतकाफ की फ़ज़ीलत एक तो शबे कद्र हासिल हो जाता है और दूसरी मकबूल हज व उम्रे का सवाब मिलता है वगैरह
दीन की सही मालूमात कुरआन और हदीस के पढने व सीखने से हासिल होगी |(इंशाअल्लाह)
पोस्ट को share करें
दुआ की गुज़ारिश
Comments
Post a Comment