Surah Fatiha Tafseer in hindi - सूरह फातिहा हिंदी में
بِسمِ اللہِ الرَّحمٰنِ الرَّحِيم
” शुरू अल्लाह के नाम से जो सब पर मेहरबान है बहुत मेहरबान है “
सूरह फातिहा – फ़ज़ीलत –
सुरह फातिहा क़ुरान मजीद की सबसे पहली सूरत है।जिस की अहादीसों में बड़ी फ़ज़ीलत आयी है।
फातिहा के मानी आगाज़ और ईबतेदा के हैं।
इस का एक अहम नाम सलात भी है।जैसा के एक हदीस ए कुदसी में है “अल्लाह ताला ने फ़रमाया – मैंने नमाज़ को अपने और अपने बंदों के उपर तकसीम कर दी है।(सही मुस्लिम)
मुराद सुरह फातिहा है।इस हदीस में सूरह फातिहा को नमाज़ से ताबीर किया गया है।जिस से ये साफ मालूम होता है के नमाज़ में इस का पड़ना बहुत ज़रूरी है।
नबी करीम (सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम) के इरशादात में इस की खूब वज़ाहत कर दी गई है। फ़रमाया – उस शक्स की नमाज़ नहीं जिस ने सूरः फातिहा नहीं पढ़ी।(सही मुस्लिम, बुखारी)
एक और हदीस है के, हज़रत अबू हुरैराह (र० ज़ी ०) से मरवी है के नबी करीम (स० अ०) ने फ़रमाया जिस ने बेगैर सुरह फातिहा के नमाज़ पढी तो उस की नमाज़ नकिस है।तीन मर्तबा आप (स० अ०) ने फ़रमाया।
अबू हुरैरा (रज़ि० ) से अर्ज़ किया गया: इमाम के पीछे भी हम नमाज़ पढ़ते हैं उस वक़्त क्या करें। हज़रत अबू हुरैरा(रज़ि० ) ने फ़रमाया इमाम के पीछे तुम सुरह फातिहा अपने जी में पढ़ो।(सही मुस्लिम)
وَاِذَا قُرِئَ الۡقُرۡاٰنُ فَاسۡتَمِعُوۡا لَهٗ وَاَنۡصِتُوۡا لَعَلَّكُمۡ تُرۡحَمُوۡنَ
” जब क़ुरान पढ़ा जाए तो सुनो और खामोश रहो “
या एक हदीस यह है के –
“जब इमाम किरात करे तो खामोश रहो” इसका मतलब ये है के जहिरी नमजों में मुकतादी सूरह फातिहा के अलावा बाकी किरात खामोशी से सुने। इमाम के साथ क़ुरान ना पड़े
सूरह फातिहा तफ़्सीर –
सुरह फातिहा मक्की सुरह है।मक्की या मदनी का मतलब ये है के जो सूरतें हिजरत से कब्ल नाजिल हुई हों वो मक्की है
और जो मदनी वो सुरतें हैं जो हिजरत के बाद नाजिल हो।
“हिजरत मतलब एक जगह से दूसरी जगह किसी वजह से जाना”
بِسْمِ ٱللَّهِ ٱلرَّحْمَٰنِ ٱلرَّحِيمِ
तर्जुमा – शुरू अल्लाह के नाम से जो बड़ा मेहरबान नेहायत रहम वाला है।
तफसीर –
अल्लाह के नाम से पढ़ता हूं या शुरू करता या तिलावत करता हूं,हर अहम काम के शुरू करने से पहले बिस्मिल्लाह पढ़ेने की ताकीद की गई है। चुनंचे हुक्म दिया गया है के जिबह या जानवर हलाल करते वक़्त,वज़ू और जमाह से पहले बिस्मिल्लाह पढ़ो।
“ क़ुरान करीम की तिलावत के वक़्त बिस्मिल्लाह से पहले अउजू बिल्लाही मिनस शैतान निर राजीम पढना ज़रूरी है”
ٱلْحَمْدُ لِلَّهِ رَبِّ ٱلْعَٰلَمِينَ
सब तारीफ़ अल्लाह के लिए है जो तमाम जहानो का पालने वाले है।
तफसीर –
तमाम तारीफें अल्लाह के लिए हैं, या इस के लिए खास है। क्यों के तारीफ़ का असल मुसतहक सिर्फ अल्लाह ही है।किसी के अंदर कोई खूबी हुस्न या कमाल है तो वो भी अल्लाह तआला का पैदा कर्दा है।इसलिए हमद का मुस्तहक वही है।
रब अल्लाह तआला के अस्मा ए हुस्ना में से है, जिस के मानी है हर चीज को पैदा करके इस की ज़रूरत मुहैय्या करने और उसको तकमील तक पहुंचाने वाला।
ٱلرَّحْمَٰنِ ٱلرَّحِيمِ
बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला
तफसीर –
अल्लाह ताला बहुत रहम करने वाला है, और इस की सिफत दीगर सिफात की तरह दाहिनी है।बाज उल्मा कहते हैं रहमान में रहीम की निस्बत ज्यादा मुबालगा है, इस लिए रहमान अद – दुनिया वल अखिरह कहा जाता है।दुनिया में इस किब्रह्मत आम है जिस से बला तखसीस काफिर व मोमीन सब फ़ैज़ याब हो रहे हैं और अखीरत में वह सिर्फ रहीम होगा यहाँ उस की रहमत सिर्फ मोमिनों के लिए खास होगी।
مَٰلِكِ يَوْمِ ٱلدِّينِ
बदले के दिन का यानी कयामत का मालिक है
तफसीर –
दुनिया में भी अगरचे मकाफाते अमल का सिलसिला एक हद तक जारी रहता है। ताहम इसका मुकममल जहुर आखिरत में होगा और अल्लाह ताला हर शख्स को इसके अच्छे या बुरे आमाल के मुताबिक जज़ा और सज़ा देगा।
इसी तरह दुनिया में आरजी तौर पर और भी कई लोगों के पास अकतियारात होते हैं लेकिन आखिरत में तमाम आख़िरत का मालिक सिर्फ और सिर्फ अल्लाह तआला होगा।
अल्लाह तआला उस रोज़ फरमाएगा –
ला मनिल मुलकुल यौम (आज किस की बादशाही है), फिर वही जवाब देगा
लिल लाहिल वाहिदिल कहहार (सिर्फ एक गालिब अल्लाह के लिए)
इस दिन कोई हस्ती किसी के लिए अख्तियार नहीं रखेगी। सारा मामला अल्लाह के हाथ में होगा।
إِيَّاكَ نَعْبُدُ وَإِيَّاكَ نَسْتَعِينُ
हम तेरी ही इबादत करते हैं और सिर्फ तुझ ही से मदद चाहते हैं
तफ़्सीर –
इबादत के मानी हैं किसी की रज़ा के लिए इंतेहाई आजिज़ी और कमाल खुशु का इज़हार और बकौले इबने कसीर सरियत में कमाले मुहब्बत खुजू और खौफ के मजमुए का नाम है।यानी जिस ज़ात के साथ मुहब्बत भी हो, उसकी माफौक अल अस्बाब ताकत के सामने आजिज़ी व बेबसी का इजहार भी हो और असबाब व माफ़ौक अल अस बाब जाराए से उसकी गिरफ्त का खौफ भी हो।
ना इबादत अल्लाह के सिवा किसी और की जायज़ है और ना इस्तायानत ही किसी और से जायज़ है।
ٱهْدِنَا ٱلصِّرَٰطَ ٱلْمُسْتَقِيمَ
हमें सीधी और सच्ची राह दिखा
तफसीर –
हिदायत के कई मफूम है, रास्ते की तरफ रहनुमाई करना,रास्ते पर चला देना, मंजिले मकसूद पर पहुंचा देना।
हमारी सिराते मुस्तकीम की तरफ राहनुमाई फरमा,इस पर चलने की तौफीक और उसपर इस्ताक़मत नसीब फरमा ताके हमें तेरी रज़ा हासिल हो।
ये सीरते मुस्तकीम महज अक्ल और ज़हानत से हासिल नहीं हो सकती।
ये सीराते मुस्तकीम वही इस्लाम है जिसे नबी करीम (स० अ०) ने दुनिया के सामने पेश फ़रमाया और जो अब क़ुरान व सही हदीसों में महफूज़ है।
صِرَٰطَ ٱلَّذِينَ أَنْعَمْتَ عَلَيْهِمْ لا٥ غَيْرِ ٱلْمَغْضُوبِ عَلَيْهِمْ وَلَا ٱلضَّآلِّينَ
उन लोगों की राह जिन पर तूने इनाम किया। उनकी नहीं जिन पर गजब किया गया (यानी वो लोग जिन्होंने पहचाना मगर उस पर अमल पैरा नहीं हुए) और ना गुमराहों की।
तफसीर –
ये सिराते मुस्तकीम की वज़ाहट है के यह सीधा रास्ता वो है जिस पर वह लोग चलें जिन पर तेरा इनाम हुआ यह लोग अंबिया, शुहुदा, सिद्दीक़ीन और सालेहीन का।
आगे है के जिन पर अल्लाह का गजब नाजिल हुआ – से मुराद यहूदी और ईसाई हैं।
सिराते मुस्तकीम पर चलने की ख्वाइश रखने वाले के लिए ज़रूरी है के वो यहूदी और ईसाई दोनो की गुमराहियों से बच कर रहें। यहूद की बड़ी गुमराही यह थी के वो जानते बूझते सही रास्ते पर नहीं चले थे। हज़रत उज़ैर( a.s) को अल्लाह का बेटा कहते थे।
ईसाई की बड़ी गलती ये थी के उन्होंने हज़रत ईशा (अ० स०) को अल्लाह का बेटा और तीन ख़ुदाओं में से एक मानते थे।
أمين
आमीन
“ सूरह फातिहा के आखिर में आमीन कहने की नबी करीम( स० अ०) ने बड़ी ताकीद और फजीलत बयान फरमाई है।इस लिए इमाम और मुक्तादी दोनो को आमीन कहने चाहिए”
दीन की सही मालूमात कुरआन और हदीस के पढने व सीखने से हासिल होगी |(इंशाअल्लाह)
अच्छा लगा तो अपने दोस्त अहबाब को share करे
दुआ की गुज़ारिश
Comments
Post a Comment