بِسمِ اللہِ الرَّحمٰنِ الرَّحِيم
” शुरू अल्लाह के नाम से जो सब पर मेहरबान है बहुत मेहरबान है “
कुफ्र –
जिन चीज़ों पर ईमान लाना ज़रुरी है उनमे से किसी एक बात को भी न मानना कुफ्र है | हर चीज़ का गुनाह अल्लाह तआला माफ़ कर देंगे लेकिन शिर्क करते मर गया तो कभी माफी नहीं मिलेगी |
एक मिसाल से समझें के कोई सख्स अल्लाह तआला को न माने या अल्लाह तआला की सिफ़ात का इनकार करे या कोई दो– तीन को ख़ुदा माने या फ़रिश्ते के वजूद का इनकार करे या अल्लाह तआला की किताबों का इनकार करे या पैगम्बर का इनकार करे,क़यामत का इनकार करे रसूलअल्लाह (स०अ०) की दी हुई खबर को झूठा कहे गोया इन तमाम सूरतों में काफ़िर हो जायेगा |
शिर्क –
शिर्क कहते हैं के अल्लाह तआला की ज़ात या सिफात में किसी दुसरे को शरीक करना |
ज़ात में शिर्क करने का मतलब ये है के दो खुदाओ को मानने लगे जैसा के इसा (अ०स०) को खुदा मानने वाले और बुत परस्त या आग की पूजा करने वाले वगैरह
सिफात में शिर्क करने से मुराद अल्लाह की सिफात की तरह किसी दुसरे के लिए कोई सिफत साबित करना क्यों के किसी मखलूक में चाहे वो कोई फ़रिश्ता हो, नबी हों, वाली हो पीर हो वगैरह, अल्लाह की सिफ़तों की तरह कोई कोई सिफत नहीं हो सकती |
शिर्क की क़िस्में –
शिर्क फि अल-सिफात की बहुत सी किस्में हैं, उनमे से चंद ये हैं :-
(1) शिर्क फि अल-क़ुदरत –
शिर्क फि अल – क़ुदरत यानी अल्लाह तआला की तरह सिफ़ते कुदरत किसी दुसरे के लिए साबित करना, मसलन ये समझना के फलां पैगंबर या वली या शुहदा वगैरह पानी बरसा सकते हैं या बेटा –बेटी दे सकते हैं या मुराद पूरी कर सकते हैं या किसी को नफ़ा – नुक्सान वगैरह पहुँचाने पर कुदरत रखते हैं तमाम बातें शिर्क हैं |
(2) शिर्क फि अल–इल्म –
शिर्क फि अल – इल्म यानी अल्लाह तआला की तरह किसी दुसरे के लिए सिफ़ते इल्म साबित करना, मसलन यूं समझना के अल्लाह तआला की तरह पैगंबर, वली वगैरह गैब का इल्म रखते थे या यूं समझना के अल्लाह तआला की तरह ये हजरात भी ज़र्रा – ज़र्रा का उन्हें इल्म है या हमारे तमाम हालात से वाकिफ हैं ये सब चीज़ शिर्क फि अल – इल्म है |
(3) शिर्क फि अल–समअ वल बसर –
शिर्क फि अल – समअ वल बसर यानी अल्लाह तआला की सिफते समअ वल बसर में किसी दुसरे को शरीक करना मसलन ये अकीदा रखना के फलां पैगंबर या वली हमारी तमाम बातों को दूर व नज़दीक से सुन लेतें हैं या हमें और हमारे कामों को हर जगह से देख लेतें हैं, ये सब शिर्क हैं |
(4) शिर्क फि अल–हकम –
शिर्क फि अल – हकम यानी अल्लाह तआला की तरह किसी और को हाकिम समझना और उसके हुक्म को अल्लाह के हुक्म की तरह मानना, मसलन ये के पीर साहब ने हुक्म दिया के ये वज़ीफ़ा नमाज़े अस्र से पहले पढ़ा करो तो उस हुक्म की तामील इस तरह ज़रूरी समझे के वज़ीफ़ा पूरा करने की वजह से अस्र की नमाज़ मकरू हो जाने या नमाज़ कज़ा हो जाने की परवाह ना करे, ये भी शिर्क है |
(5) शिर्क फि अल–इबादत –
शिर्क फि अल-इबादत यानी अल्लाह तआला की तरह किसी दुसरे को इबादत का मुसतहिक़ समझना | मसलन किसी कब्र या पीर को सजदा करना या किसी के लिए रुकुह करना या किसी पीर, पैगंबर, इमाम और वली के नाम का रोज़ा रखना या किसी की नज़र और मन्नत मानना या किसी कब्र या मुर्शिद के घर का खानाए काबा की तरह तवाफ़ करना, ये सब शिर्क है |
कुछ एसे शिर्क जो आजकल आम हो चुके हैं –
आजकल मुसलमान एसा काम करते हैं जिसको शिर्क नहीं समझते लेकिन वो असल में शिर्क है |
(1) नजूमियों से गैब की खबर पूछना |
(2) पंडित को हाथ दिखाना या फ़ाल खुलवाना |
(3) चेचक या किसी बीमारी को छुत करना जैसा के चेचक की बीमारी को देहातों में लोग कहते हैं के माता आई है, वगैरह |
(4) ताजिया बनाना
(5) कब्र पर चडावा चडाना,नज़र व नियाज़
(6) अल्लाह के अलावा किसी और की क़सम खाना
(7) तस्वीर बनाना या तस्वीर की ताज़ीम करना
(8) पीर या वली हजरात को हाजत रवा या मुश्किल कुशा कह कर पुकारना
(9) क़बरों पर मेला लगाना |
अल्लाह रब्बुल इज्ज़त हम तमाम को शिर्क जैसी अज़ीम जुर्म से हिफाज़त फरमाए – अमीन
दीन की सही मालूमात कुरआन और हदीस के पढने व सीखने से हासिल होगी |(इंशाअल्लाह)
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