بِسمِ اللہِ الرَّحمٰنِ الرَّحِيم
” शुरू अल्लाह के नाम से जो सब पर मेहरबान है बहुत मेहरबान है “
10 जन्नती सहाबी(अशरा मुबशरा) –
प्यारे नबी (स०अ०) को जिसने देखा और ईमान लाया उन्हें सहाबी कहते हैं | हर एक सहाबा जन्नती हैं, लेकिन 10 एसे सहाबी ए रसूल हैं जिनको नबी करीम (स०अ०) ने दुनिया में ही जन्नती होने की बशारत दी थी | उन 10 सहाबी (रज़ी०) को अशरा मुबशरा कहते हैं |
10 अशरा मुबशरा –
(1) हज़रत अबू बक्र सिद्दीक (रज़ी०)
(2) हज़रत उमर बिन ख़त्ताब (रज़ी०)
(3) हज़रत उस्मान बिन अफ्फान (रज़ी०)
(4) हज़रत अली बिन अबी तालिब (रज़ी०’)
(5) हज़रत तलहा बिन उबैदुल्लाह (रज़ी०)
(6) हज़रत जुबैर बिन अल – अव्वाम (रज़ी०)
(7) हज़रत अब्दुर – रहमान बिन औफ़ (रज़ी०)
(8) हज़रत साद बिन अबी वक्कास (रज़ी०)
(9) हज़रत सईद बिन ज़ैद (रज़ी०)
(10) हज़रत अबू उबैदा बिन जर्राह (रज़ी०)
इसके मुताल्लिक हदीस –
हज़रत अब्दुर रहमान बिन औफ़ (रज़ी०) से रिवायत है के अल्लाह के रसूल (स०अ०) ने इरशाद फ़रमाया – अबू बक्र जन्नती, उमर जन्नती, उस्मान जन्नती, अली जन्नती, तलहा जन्नती, ज़ुबैर जन्नती, अब्दुर रहमान बिन औफ़ जन्नत, साद बिन वक्कास जन्नती, सईद बिन ज़ैद जन्नती, अबू उबैदा बिन जर्राह जन्नती |(तिरमिज़ी)
(1) हज़रत अबू बक्र सिद्दीक (रज़ी०) –
हज़रत अबू बक्र (रज़ी०) का नाम अब्दुल्लाह इबने कहाफ़ा था|कुन्नियत उनकी अबू -बक्र और लक़ब -सिद्दीक था|रसूल अल्लाह (स०अ०) के वफात के बाद सहाबा (रज़ी०) ने उनसे बैत की और मुहाजिरीन और अंसार ने उन्हें ख़लीफा मुक़र्रर किया |नबी करीम (स०अ०) के नबूवत के एलान के बाद सबसे पहले शख्स हैं, जो इस्लाम में दाख़िल हुए |
तबूक के लडाई के वक़्त जब नबी करीम (स०अ०) ने माल जमा करने का हुक्म दिया,हज़रत अबू बक्र (रज़ी०) ने घर में जो कुछ था सब आप (स०अ०) के हुजुर में पेश कर दिया,आप (स०अ०) ने फ़रमाया -अबू बक्र, पीछे क्या छोड़ कर आए,जवाब दिया – मै तो अल्लाह और उसके रसूल को छोड़ कर आया हु|
हज़रत अबू बक्र सिद्दीक (रज़ी०) की वफात 63 साल उम्र में हुई,हिज़रत के तेरहवे साल,दूसरी या तीसरी जामद उल आखिर को जुमाह के दिन वफात पाई|
(2) हज़रत उमर बिन ख़त्ताब (रज़ी०) –
हज़रत उमर (रज़ी०) एक जलिलो कद्र सहाबी और दुसरे ख़लीफा थे,आप अदल और इन्साफ पर कायम रहते और नबी करीम (स०अ०) की सुन्नत की पूरी पैरवी करते,काफिरों के मुकाबले में आप शख्त थे | रसूल अल्लाह (स०अ०) के साथ जंगे बदर,उहद,फ़तह मक्का.खैबर और तबूक की लडाईयों में शरीक़ थे|
26 ज़िल हिज्जा (23 हिजरी ) चार शंबा के नमाज़े फज्र में अबू लो लो फेरोज़ी मजूसी काफ़िर ने आप को शिकम में खंज़र मारा और आप ये ज़ख़्म खा कर तीसरे दिन शहीद हो गए
(3) हज़रत उस्मान बिन अफ्फान (रज़ी०) –
हज़रत उस्मान (रज़ी०) उमैय्या के खानदान से थे,आप के वालिद का नाम अफ्फान था वह, उमैय्या के पोते थे |आप हसीन व खुबसूरत थे,बचपन से ही पढना – लिखना सिखा था और अल्लाह ने आप को बहुत माल व दौलत से नवाज़ा था,आप सदका और अल्लाह के रस्ते मे बहुत खर्च किया करते थे |
जब हज़रत उस्मान (रज़ी०) कुरान मजीद की तिलावत कर रहे थे तो कुछ बागियों ने आप के मकान की दीवार फांद कर घुस गए और आप (रज़ी०) के दो ख़ादिमों को कतल किया फिर आप को शहीद कर डाला
(4) हज़रत अली बिन अबी मुताल्लिब (रज़ी०) –
हज़रत अली (रज़ी०) अबुतालिब के छोटे बेटे और रसूल अल्लाह (स०अ०) के चचेरे भाई और दामाद थे|हज़रत अली (रज़ी०) बचपन से ही रसूल अल्लाह (स०अ०) के साथ रहे और जब आप दस या ग्यारह साल के थे तो ने इस्लाम कबूल कर लिया,बचपन में सबसे पहले हज़रत अली (रज़ी०) ने ही इस्लाम कबूल किया था
हज़रत अली (रज़ी०) फज्र के लिए मस्जिद जा रहे थे के इ10ब्ने मुल्जिम जो रात से घात लगाये बैठा था आप (रज़ी०) पर हमला कर दिया,तलवार का वार आप के सर पर पड़ा चूँकि तलवार में ज़हर लगा था तो उसका ज़हर पुरे बदन में फ़ैल गया |इब्ने मुल्जिम पकड़ा गया,आप (रज़ी०) ने अपने दोनों बेटों को बुलाया और नसीहत की के इबने मुल्जिम को खाना खिलाओ,पानी पिलाओ और अच्छे से रखो |
दो दिन के बाद इसी जख्म के साथ आप शहीद हो गए,बाज़ रिवायत के मुताबिक 17 रमजान को आप शहीद हुए|
(5) हज़रत तलहा बिन उबैदुल्लाह (रज़ी०) –
तलहा (रज़ी०) मक्का में पैदा हुए,उनके वालिद का नाम उबैदुल्लाह इब्ने उथमान था | वह कुरैश काबिले से ताअलुक रखते थे |
तलहा (रज़ी०) कपडे के ताजिर थे, हज़रत अबू बक्र सिद्दीक (रज़ी०) के कहने पर आपने इस्लाम क़ुबूल किया | गजवा बदर के मौके पर नबी करीम (स०अ०) ने तलहा (रज़ी०) को क़ुरैश के खबर लाने के लिए शाम भेजा था,जब आप (रज़ी०) वापस आये तो बदर की लडाई ख़त्म हो चुकि थी |
गजवा ये उहद में आप (रज़ी०) शरीक़ हुए और बड़ी दिलेरी से काफिरों का मुकाबला करते हुए शहीद हुए |
(6) हज़रत जुबैर बिन अल – अव्वाम (रज़ी०) –
हज़रत जुबैर (रज़ी०), नबी करीम (स०अ०) के फ़ुफी ज़ात भाई थे | आप (रज़ी०) के वालिद का नाम अव्वाम और वालिदा का नाम सफ़िया था |
इस्लाम लाने के बाद आप (रज़ी०) ने शख्त तकलीफ़ और परेशानियाँ उठाएं | हर इस्लामी जंग में आप (रज़ी०) शरीक़ थे और बड़ी दिलेरी से काफिरों का सफाया किया |
(7) हज़रत अब्दुर – रहमान बिन औफ़ (रज़ी०) –
हज़रत अब्दुर – रहमान बिन औफ़ (रज़ी०) (579 इ०) को मक्का में पैदा हुए | आप (रज़ी०) के वालिद का नाम औफ़ और वालिदा का नाम शिफ़ा था,
हज़रत अबू बक्र के कहने पर आप (रज़ी०) ने इस्लाम कुबूल कर लिया था | पेशे से आप ताज़ीर थे, अल्लाह तआला ने आप (रज़ी०) को बहुत सी दौलत से नवाज़ा था, उहद की लडाई में आपने काफिरों का डट कर मुकाबला किया और कई ज़ख्म खाए |
(8) हज़रत साद बिन अबी वक्कास (रज़ी०) –
हज़रत साद (रज़ी०),नबी करीम (स०अ०) के मामू जाद भाई और बहनोई थे | आपके वालिद का नाम वक्कास था |
इस्लाम में दाख़िल होने में हज़रत अबी बक्र (रज़ी०) की तबलीग भी शामिल थी | तकरीबन सारे जंग में आप (रज़ी०) शरीक हुए |
(9) हज़रत सईद बिन ज़ैद (रज़ी०) –
हज़रत सईद बिन ज़ैद (रज़ी०), हज़रत उमर (रज़ी०) के चचा ज़ाद भाई थे | आपके वालिद का नाम ज़ैद बिन अम्र और वालिदा का नाम फातिमा बीनते नाजा था |
आप (रज़ी०) आलिम व फ़ाज़िल सहाबी थे, शुरुवाती ज़माने में ही आप इस्लाम में दाखिल हुए | हज़रत सईद (रज़ी०) और उनकी अहलिया (रज़ी०),हज़रत उमर (रज़ी०) के ईमान लाने का सबब बने | अकीक के मक़ाम पर आपका इन्तेकाल फरमाए |
(10) हज़रत अबू उबैदा बिन जर्राह (रज़ी०) –
आप (रज़ी०) का असल नाम आमिर और आप की कुन्नियत अबू उबैदा और लक़ब अमीन था | आप के वालिद का नाम अब्दुल्लाह था |
हज़रत अबू बक्र (रज़ी०) के दावत ए इस्लाम से आप (रज़ी०) दीन में दाखिल हुए | आप ने भी तकरीबन सारे बड़े जंगों में शिरकत की और जंगे बदर में इस्लाम के खातिर आप (रज़ी०) ने अपने बाप को क़त्ल कर दिया | हज़रत उमर (रज़ी०) के दौरे खिलाफ़त में आप (रज़ी०) का इंतकाल हुआ |
दीन की सही मालूमात कुरआन और हदीस के पढने व सीखने से हासिल होगी |(इंशाअल्लाह)
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