بِسمِ اللہِ الرَّحمٰنِ الرَّحِيم
” शुरू अल्लाह के नाम से जो सब पर मेहरबान है बहुत मेहरबान है “
सजदा सहु की हकीकत –
सहु के माअनी है भूलना | नमाज़ में जो बातें वाजिब हैं उनमे से अगर कोई वाजिब भूल कर छुट जाये तो नमाज़ में कमी – ज्यादती हो जाती है | इस कमी या भूल को दूर करने के लिए शरियत ने सजदा सहु यानी (भूल का सजदा) करने का हुक्म दिया है |
सजदा सहु करने से नमाज़ पूरी हो जाती है, लौटाने की ज़रूरत नहीं होती अलबत्ता सजदा सहु वाजिद होने की सूरत में अगर न किया गया तो नमाज़ दुबारह पढनी वाजिब है |
मसला – नमाज़ में अगर कोई फ़र्ज़ जैसे रुकुह या सुजूद छुट गया, भूल कर हो या जान भुझ कर या कोई वाजिब क़सदन छोड़ दिया तो फिर सजदा सहु से काम नही चलेगा | नमाज़ लौटानी पढ़ेगी |
इसके मुताल्लिक चंद हदीसें –
हज़रत मुगीरा बिन शाअबा (रज़ी०) से मर्वी है के नबी करीम (स०अ०) एक रोज़ दो रकात पढ़कर खड़े हो गए बैठे नही फिर सलाम के बाद सजदा सहु किया
हज़रत अब्दुल्लाह बिन मसउद (रज़ी०) से मर्वी है के सरवरे दो आलम (स०अ०) ने जोहर नामाज पढाई तो आप ने सलाम के बाद सहु के दो सजदे किये |
हज़रत इमरान बिन हसीन (रज़ी०) से मर्वी है के हुजुरे अकरम (स०अ०) ने सहु के सजदे सलाम के बाद किये | इस हदीस को हज़रत इमरान के अलावा हज़रत आयेशा सिद्दीका, हज़रत अबू हुरौरह, हज़रत मुगीरा बिन सअबा और हज़रत साअद बिन वक्कास (रज़ी०) ने भी रिवायत किया है
हज़रत सौबान (रज़ी०) से मर्वी है के रसूल अल्लाह (स०अ०) ने फ़रमाया के – सहु के लिए सलाम के बाद दो सजदा हैं |
सजदा सहु वाजिब होने की सूरतें –
(1) नमाज़ के वाजिबात में से कोई वाजिब भूल कर छुट जाये मसलन फ़र्ज़ की पहले दो रकातों में सुरह फ़ातिहा भूल जाये या सुरह मिलाना भूल जाये |
(2) किसी वाजिब को उसकी जगह से आगे या पीछे कर दे मसलन सुरह पहले पढ़े और उसके बाद सुरह फ़ातिहा पढ़े |
(3) किसी वाजिब की अदाएगी में एक रुक्न यानी तीन बार सुभानअल्लाह कहने की मिकदार खड़ा सोचता रहा के क्या पढूं |
(4) किसी वाजिब को दो बार अदा करे
(5) किसी वाजिब को बदल दे मसलन इमाम ज़ाहिरी नमाज़ में अहिस्ता और सरी में बुलंद आवाज़ से क़रात करे |
(6) नमाज़ के फर्जों में से किसी फ़र्ज़ को उसकी जगह से हटा कर बाद में अदा करे मसलन पहले सजदा बाद में रुकुह करे |
सजदा सहु का सही तरीका –
आखिर क़ायदा में पूरी अत्ताहियात पढने के बाद दाहिमी (सीधी) तरफ सलाम फ़ेरे इसके बाद दो सजदे करे और कायदा में बैठे और दुबारा हस्बे दस्तूर अत्ताहियात और दरूद ए अब्राहिम पढ़े और उसके बाद दुआ पढ़ कर दोनों तरफ सलाम फेर दे |
मसला –
सजदा सहु के वक़्त अत्ताहियात के बाद अगर सलाम नहीं फेरा और सजदे में चला गया तो भी जाएज़ है मगर एसा करना मकरूह तहरिमी है |
दीन की सही मालूमात कुरआन और हदीस के पढने व सीखने से हासिल होगी |(इंशाअल्लाह)
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दुआ की गुज़ारिश
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