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Pani peene ki sunnat tarika - पानी पीने की दुआ

       (क़ुरान हदीस के हवाले से चंद पानी पीने का तरीका और दुआ )

بِسمِ اللہِ الرَّحمٰنِ الرَّحِيم

“शुरू अल्लाह के नाम से जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है”

Pani Peene ki sunnat tarika – पानी पीने की दुआ 

 

पानी अल्लाह की एक अहम और अनमोल  नेमत है। जो बा आसानी हासिल हो जाती है। पानी का ना तो कोई रंग है और ना ही कोई जायका(teste) होता है फिर भी  पानी एक  ऐसी चीज है की हम प्यास बुझाने के लिए सारी दौलत देने को तैयार हो जाते हैं।  

पानी को अगर बिना सुन्नती तरीक़ा के पीए तो प्यास तो बुझ जाती है पर कोई सवाब नहीं।लेकिन वही पानी अगर हम सुन्नत के मुताबिक पीते हैं तो दोनों फायदे हासिल होते हैं।यानी प्यास भी बुझती है और सावाब भी मिलता है।

और हम ये भी जानते हैं।अगर कोई हमारे प्यारे नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की सुन्नत को जिंदा करता है तो उसको 100 शहीदों के बराबर सवााब मिलता है। 

 

तो देखते हैं पानी पीने का क्या सही सुन्नती तरीक़ा है।  

 

(1) दाहिने हाथ(Right Hand) से पानी पीना 

दाहिने हाथ यानी सीधे हाथ से पानी पीना चाहिए क्योंकि बाया(Left Hand) से शैतान  पानी पीता है।

 

(2) बैठ कर पानी पीना

पानी पीते वक़्त अगर खड़े हैं तो बैठ जाना चाहिए।

आप को मालूम है के

  • बैठकर पानी पीने से Body में एसिड (ACID) का स्तर(Level)  ठीक रहता है।
  • एकऔर रिसर्च (RESERCH) से मालूम होता है के बैठ कर पानी पीने से किडनी (KIDNEY) की बीमारियां नहीं होती।
  • घुटने हमेशा मजबूत रहते हैं।
  • रीड की हड्डी को मजबूती मिलती है।
  • दिल की बीमारी नहीं होती।
  • और दिमाग मजबूत रहता है। वगैरह

“शुभानाल्लाह” सुन्नतों  पे अमल करने का  कितना फायदा है।

एक मसला ये भी है के – वज़ू के बाद जो पानी बचता है या ज़मज़म  का पानी(Zam Zam Water) खड़े हो कर ही पीना चाहिए। इन दोनों के अलावा हमेशा पानी बैठ कर पीना अफ़ज़ल है।

 (3) देख कर पानी पीना –

 पानी को गौर से देख कर पीना भी जरूरी है। क्यों कि अगर पानी में कोई कीड़ा(insects) या नुकसानदेह चीज हो तो उससे बचा जा सके।

एक साहब ने अपने बारे में  बताया है के वो एक बार बिना देखे पानी पी रहे थे।गिलास को अपने मुंह से लगा के पीने वाले थे  के खयाल हुआ के एक बार पानी को देख ले।जब देखा तो पता चला के पानी में बहुत सारी चीटियां(ants) थीं। तो पता चला की देख के पीना कितना ज़रूरी है।

 

(4) पानी पीने से पहले बिस्मिल्लाह कहना –

 

पानी पीने से पहले कि दुआ –

 

   

बिस्मिल्लाह

तर्जुमा – अल्लाह के नाम से शुरू करता हूं।

 

सिर्फ पानी ही नहीं बल्कि कोई भी काम शुरू करने से पहले अगर अल्लाह का नाम ना लिया जाए तो उसमें बरकत नहीं होती। इसीलिए हमारे प्यारे नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने बिस्मिल्लाह की अहमियत का बार बार ज़िक्र किया है।

(5) तीन सांसों में पीना –

 हदीस का मफूम है के नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम इरशाद फरमाते हैं कि पानी को तीन  साँसों में पीया करो और  बर्तन या गिलास से मुंह बाहर निकाल कर सांस लो।

तीन सांस के मुतल्लिक़ एक मसला ये है की –   अगर काफी शिद्दत से प्यास लगी हो तो कुछ सेकंड्स ग्लास से मुंह बाहर निकाल कर सांस लें फिर पीने लगें।यानी दूसरी सांस और तीसरी सांसों के दरमियान काम वक़्त लगे।ये सिर्फ शिद्दत के प्यास के मुतल्लिक़ है।    

 (6) पानी पीने के बाद अलहम्दुलिल्लाह कहना –

पानी पीने के बाद अल्लाह रब्बुल इज्ज़त का शुक्र अदा करें के अल्लाह ने हमें अपनी एक अहम नेमत से नवाजा है।

अलहम्दुलिल्लाह का तर्जुमा:-

सब तरह की तारीफ़ अल्लाह के लिए है।

एक हदीस का मफूम  है के अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त का शुक्र अदा करने का सबसे बेहतर कलमा अल्हम्दुलिल्लाह कहना है 

 

पानी पीने के मुतल्लिक़ चंद हदीसें –

 

नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम  ने इरशाद फरमाया जो चांदी या सोने के बर्तन में खाता है या पीता है वह अपनी पेट में दोज़ख़ की आग भड़काता है।(मुस्लिम, बुखारी)

 

“नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया पानी ऊंट (camel) की तरह एक ही सांस में ना पी जाओ बलके दो दो या तीन तीन मर्तबा सांस लेकर पीयो और जब पीना शुरू करो तो बिस्मिल्लाह पढो।और जब बर्तन मुंह से हटाओ तो अलहम्दुलिल्लाह कहो।(तिरमिज़ी)

“ और जगह नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का पाक इरशाद है।आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़माया अगर तुम्हे पता चल जाए के खड़े होकर पानी पीने का कितना अज़ाब है तो तुम अपने हलक में हाथ डाल कर उस पानी को बाहर निकाल दो।और उस वक़्त तुम देख लो के तुम्हारे साथ कितना खोफनाक शक्ल वाला शैतान मुंह लगा कर पानी पीता है।तो तुम पानी पीना छोड़ दो ”

 

“ हज़रत जाफर रहमतुल्लाह अलैह फरमाते हैं कि रसूल अल्लाह  सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम जब पानी पीते तो ये दुआ पढ़ते ”

(रूहुल मानी)

 

अलहम्दुलिल्लाह हिल लजी सकाना अज़ बन फुरातम बिरमतिही वलम यज़अल्हू  मिलहन उजाजम बिजुनोबिना (कंजुल उम्मत)

 

तर्जुमासब तारीफें अल्लाह के लिए हैं जिस ने अपनी  रहमत से मीठा और खुशगवार पानी पिलाया और हमारी गुनाहों के सबब इसको खारा कड़वा नहीं बनाया।

 

DUA IN ENGLISH

 

Alhamdu lillahilladzi saqaanaa  a’zban

furaatam birabmatihee walam yaj’alhu milhan ujaajam bizunoobinaa.

 

 

PANI PEENE KI SUNNATEIN IN URDU”

 

پانی پینے کی سنتیں″۔″

 

۱. داہنے ہاتھ سے پاني پینا

۲. بیٹھ کر پانی پینا

۳. دیکھ کر پانی پینا

۴. پانی پینے سے پہلے بِسمِ اللّٰہِ پڑنا.

۵. تین سانسوں میں پانی پینا

۶. پانی پینے کے بعد الحمدُ لله پڑھنا

 

 

दीन की सही मालूमात  कुरआन और हदीस के पढने व सीखने से हासिल होगी |(इंशाअल्लाह)

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दुआ की गुज़ारिश

 

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بِسمِ اللہِ الرَّحمٰنِ الرَّحِيم ” शुरू अल्लाह के नाम से जो सब पर मेहरबान है बहुत मेहरबान है ”   खजूर (Dates) – अल्लाह तआला ने हमें बेशुमार नेमतें से नवाज़ा है, उन नेमतों में से खजूर एक अहम्  नेमत है जिसका ज़िक्र हदीसों में कसरत से आया है | नबी करीम (स०अ०) के ज़माने में कसरत से खजूर के बागात हुआ करतीं थीं | ये नबी करीम (स०अ०) की दुआओ का सिला है के उस ज़माने से आज भी अरब में कसरत से पुरे साल खजूरों की खेती होती है और कभी कमी ना आई |   इसके मुताल्लिक हदीस – हज़रत साद बिन अबी वक्कास (रज़ी०) से मय्सर है के वह अपने वालिद गरामी से रिवायत करते हैं के नबी (स०अ०) ने फ़रमाया – जिस शख्स ने निहार मुह अज्वा खजूर के सात दाने खाए उसको उस दिन में ना तो किसी ज़हर से और ना किसी जादू से नुक्सान पहुंचेगा | (मुस्लिम ,अबू दाऊद) उपर के हदीस में मसनदे अहमद ने इजाफा किया है के – और अगर उसने ये खजूरें शाम को खाई तो किसी चीज़ से सुबह तक कोई नुक्सान नहीं होगा |   खजूर के फायदे – (1) खजूर में ज्यादा मिकदार में पोटाशियम होता है जो के बदन की कमज़ोरी में बहुत फायदेमंद है | रोज़ाना एक खजूर का दूध के साथ खाना बदन की कमज़ोरी को

Aulad ki tarbiyat – औलाद की तरबियत कैसे करें

بِسمِ اللہِ الرَّحمٰنِ الرَّحِيم ” शुरू अल्लाह के नाम से जो सब पर मेहरबान है बहुत मेहरबान है ”     औलाद की तरबियत – औलाद की तरबियत करना माँ-बाप की अहम् ज़ोम्मेदारी है | ये बात भी काबिले एतेबार है के अगर घर की ख़वातीन या माँ दीनदार है तो इंशाअल्लाह बच्चे ज़रूर दीनदार होंगे क्यूंकि बच्चों की असल दर्सगाह माँ की गौद है | जैसा उसके घर का माहौल होगा तो बच्चे ज़रूर उसमे ढालेंगे अगर माँ-बाप ही नए माहौल के हों तो बच्चे का दीनदार होना मुश्किल है |   अल्लाह तआला का इरशाद – يَـٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُوا۟ قُوٓا۟ أَنفُسَكُمْ وَأَهْلِيكُمْ نَارًۭا وَقُودُهَا ٱلنَّاسُ وَٱلْحِجَارَةُ عَلَيْهَا مَلَـٰٓئِكَةٌ غِلَاظٌۭ شِدَادٌۭ لَّا يَعْصُونَ ٱللَّهَ مَآ أَمَرَهُمْ وَيَفْعَلُونَ مَا يُؤْمَرُونَ तर्जुमा – ए ईमान वालों ! अपने आप को और अपने घर वालों को उस आग से बचाओ जिसका इंधन इंसान और पत्थर होंगे उसपर शख्त कड़े मिजाज़ के फरिश्तें मुक़र्रर हैं जो अल्लाह के किसी हुक्म में उसकी नाफ़रमानी नहीं करते, और वही करते हैं जिसका उन्हें हुक्म दिया जाता है | (सुरह तहरिम आयत 6) इसके मुताल्लिक हदीस – नबी करीम (स०अ०) ने इरश