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Showing posts from May, 2021

Jang e Uhad - उहद की लड़ाई का क़िस्सा

بِسمِ اللہِ الرَّحمٰنِ الرَّحِيم ” शुरू अल्लाह के नाम से जो सब पर मेहरबान है बहुत मेहरबान है ”   जंग ए उहद – बदर की लड़ाई के बाद दूसरी बड़ी जंग जो मुसलमानों और कुफ्फार के बीच हुई वो जंग ए उहद है | जंग ए उहद में मुसलमानों की एक गलती की वजह से शिकस्त हुई और बहुत से  सहाबा (रज़ी०) शहीद हुए |   जंग से पहले का हाल – जंग ए बदर में कुफ्फार को शिकस्त हुई, इस बात से उनके दिलों में बदला लेने की तड़प पैदा हुई  और दूसरी जंग के लिए तय्यारी शुरू करने में मसरूफ हो गये | एक बड़ा लश्कर तैयार किया गया यहाँ तक के मक्के के हब्शी गुलाम को भी इस जंग में शरीक किया गया | कुफ्फार के लश्कर के  सरदार अबू सुफियान थे | उधर मदीने में जब नबी करीम (स०अ०) को इस बात की खबर हुई तो आप (स०अ०) ने शहाबा (रज़ी०) से मशवरा किया, बहुत से सहाबा (रज़ी०) की राय थी के मदीने के बाहर जाकर लडाई हो और बाज़ की राय ये थी के मदीने में जंग लड़ी जाये |   जंग में लश्कर की तादात – जंग ए बदर की तरह गजवा ए उहद में भी कुफ्फार की तादाद मुसलमानों से जाएद थी | कुफ्फार की तादात तकरीबन तीन हज़ार थी जंगी सामान से लयेश थे किसी चीज़ की कमी न थी | वहीँ दूसरी तरफ

Jang e Badr – बदर की लड़ाई का बयान

بِسمِ اللہِ الرَّحمٰنِ الرَّحِيم ” शुरू अल्लाह के नाम से जो सब पर मेहरबान है बहुत मेहरबान है ”   जंग ए बदर – जंग ए बदर इस्लामी तारिख की एक अहम् जंग है, जिस जंग में मुसलमानों की तादात बहुत थोड़ी और कुफ्फार की तीन गुना जायेद थी मगर अल्लाह तआला  ने अपने फरिश्तों से इस जंग में मुसलमानों की मदद फरमाई और फतह हासिल हुई  |   जंग से पहले का हाल – जब नबी करीम (स०अ०) हिजरत करके मक्के से मदीने तशरीफ़ लाए तो मक्का के कुफ्फार को बहुत नागवार गुज़रा और इस बात की कोशिश करने लगे के कैसे मुसलमानों से इन्तकाम लिया जाये | एक वजह यह भी थी के क़ुरैश के एक शख्स उमरू बिन ह्जरमी, मुसलमानों के हांथों मारा गया था और इसी का बहाना बनाकर कुफ्फारे मक्का जंग करने के लिए आमादा थे | नबी करीम (स०अ०) तक ये खबर पहुंची के मक्के वालों का एक काफ्ला शाम से आ रहा है और मदीने के करीब से गुजरेगा तो आप (स०अ०) ने मक्के वालों पर एक किस्म का रौब कायम करने के लिए मुहाजरीन और अंसार की एक जमाआत को रवाना फ़रमाया के मक्का वालों के काफले को रोके | ये जमाअत जंग के इरादे से नहीं भेजी गई थी इसलिए कोई जंगी सामान नहीं रखी गई थी | किसी तरह इस जमाअ

Itikaf ki Fazilat – एतिकाफ की नीयत और दुआ

بِسمِ اللہِ الرَّحمٰنِ الرَّحِيم ” शुरू अल्लाह के नाम से जो सब पर मेहरबान है बहुत मेहरबान है ”   एतिकाफ़  – एतिकाफ़ का लाफ्ज़ी माअना ठहरने के हैं | अल्लाह की रज़ा के लिए मस्जिद में ठहरे रहने का नाम एतिकाफ़ है | एतिकाफ़ का अह्तामाम ख़ास तौर पर रमज़ान के आखरी अशरे यानी 20 रमज़ान की मगरिब से शुरू होता है और ईद का चाँद देख कर ख़तम होता है | अल्लाह तआला का इरशाद है  – ” और हमने इब्राहीम और इस्माईल को ये ताकीद की के – तुम दिनों मेरे घर को उन लोगो के लिए पाक करो जो (यहाँ ) तवाफ़ करें और एतिकाफ़ में बैठे और रुकुह सजदा बजा लायें ” (सुरह बकरह, आयत 125) हदीस – हज़रत अम्मा आयेशा (रज़ी०) फरमाती हैं के नबी करीम (स०अ०) रमजान के आखरी अशरे का एतिकाफ़ फरमाते रहे, यहाँ तक के आप (स०अ०) की वफात हो गई उसके बाद आप (स०अ०) के अज्वाज़ मुतहरात एतिकाफ़ करती रहीं (बुख़ारी )   एतिकाफ़ के फायदे – (1) एतिकाफ़ करने वाला अपने तमाम बदन और तमाम वक़्त अल्लाह तआला की इबादत के लिए वक्फ कर देता है | (2) दुनिया के झगड़ों और बहुत से गुनाहों से महफूज़ रहता है | (3) एतिकाफ़ की हालत में सोना भी इबादत में शुमार होता है | (4) शब् ए कद्र जो हज़ार महीनो स

Eid ki Namaz aur Tariqa – ईद की नमाज़ का बयान

بِسمِ اللہِ الرَّحمٰنِ الرَّحِيم ” शुरू अल्लाह के नाम से जो सब पर मेहरबान है बहुत मेहरबान है ”     ईद के बारे में – इस्लाम में दो ईद हैं – ईद उल फ़ित्र और ईद उल अजहा, ये दोनों नमाजें वाजिब हैं | जिन लोगों पर जुमा की नमाज़ फ़र्ज़ है उन्ही पर ईद की नमाज़ वाजिब है और जो शर्तें जुमा की नमाज़ में है वही ईद की नमाज़ की हैं | इस्लामी तारीख – ईद उल फ़ित्र की एक अपनी इस्लामी तारीख है,नबी करीम (स०अ०) और सहाबा (रज़ी०)  ने रमज़ान के महीने में  जंग ए बदर की लडाई लड़ी और काफिरों के उपर फतह हासिल की और  इसी फतह की  खुशी में पहली बार 01 शव्वाल सन 624 हिजरी में ईद की नमाज़ अदा की थी | ईद के दिन की सुन्नत  – (1) ईद की नमाज़ के लिए गुस्ल और मिस्वाक करना (2) नया या साफ़ सुथरा लिबास पहनना (3) खुशबू लगाना (4) ईद की नमाज़ से पहले ख़ुजुर या कोई मीठी चीज़ खाना (5) नमाज़ से पहले  गरीब मिसकीनों  को सदक़ा देना ताके वह भी इस खुशी में शरीक़ हों (6)  नमाज़ के लिए पैदल जाना (7) एक रास्ते से जाना और दुसरे रास्ते से वापस आना (8) ईद की नामाज से पहले नफ्ल नमाज़ पढना (9) रास्ते में जाते वक़्त आहिस्ता अहिस्ता या बुलंद आवाज़ से तकबीर कहते हुए ज

Roze ke Aham Masail – रोज़े के मसले मसाइल

بِسمِ اللہِ الرَّحمٰنِ الرَّحِيم ” शुरू अल्लाह के नाम से जो सब पर मेहरबान है बहुत मेहरबान है ”     रोज़े के मसाइल क्यों जानना ज़रूरी है ? – रोज़ा हर मुसलमान मर्द और औरत पर फ़र्ज़ है ब-शर्ते के वो अक़लमंद हो, बालिग़ हो और साहेबे होश वाला हो | रोज़े के मसाइल हर शक्श को जानना ज़रूरी है ताके रोज़े को सही इल्म के साथ रखा जाये और अल्लाह तआला के तरफ् से जो इनामात हैं वह पूरी हासिल कर सके | रोज़ा मजनून  , नाबालिग़, पागल-दीवाना और बे होश  पर फ़र्ज़ नहीं है |   रोज़े के मसाइल – जिन चीजों से रोज़ा नहीं  टूटता – (1) अगर कोई भूल कर खा ले या पी ले तो नहीं टूटता अगर याद आ जाये तो फ़ौरन रुक जाये और कुल्ली कर ले  | (2) खुद ब ख़ुद उलटी आई तो रोज़ा नहीं टुटता (3) आँख में दवा या सुरमा लगाने से रोज़ा नहीं टूटता (4) थूक निगलने  रोज़ा  नहीं टूटता (5) मुह से खून निकला और उसको मुह से निगल गया तो रोज़ा नहीं टूटता (6) अगर किसी उज्र नमक ज़बान पर रखा और फिर थूक दिया तो रोज़ा नहीं टूटता (7) इंजेक्शन लगवाने या गुलुकोज चढ़वाने  से रोज़ा नहीं टूटता (8) सोते हुए अह्तालाम(Night fall) आ जाने से रोज़ा नहीं टूटता   जिन चीजों से रोज़ा टूट जाता है –

Shab e Qadr ki Fazilat – शबे कद्र की नमाज़ और दुआ

بِسمِ اللہِ الرَّحمٰنِ الرَّحِيم ” शुरू अल्लाह के नाम से जो सब पर मेहरबान है बहुत मेहरबान है ”     शबे कद्र के बारे में – शब् के मानी रात के हैं और कद्र के मानी इज्ज़त व अज़मत के हैं, यानी शबे कद्र इज्ज़त व अज़मत की रात है और शबे कद्र का मिलना हज़ार महीनो की इबादत से बेहतर है | रमज़ान के आखरी अशरे यानी 21,23,25,27 और 29 की ताक़ रातों में इसकी तलाश करनी चाहिए |   कुरआन मजीद में अल्लाह तआला  का इरशाद – إِنَّا أَنزَلْنَاهُ فِي لَيْلَةِ الْقَدْرِ तर्जुमा – बेशक हमने इस (कुरआन ) को शबे कद्र में नाजिल किया है | وَمَا أَدْرَاكَ مَا لَيْلَةُ الْقَدْرِ तर्जुमा – और तुम्हे क्या मालूम के शबे कद्र क्या चीज़ है ? لَيْلَةُ الْقَدْرِ خَيْرٌ مِّنْ أَلْفِ شَهْرٍ तर्जुमा – शबे कद्र हज़ार महीनो से बेहतर है |   खुलासा –  पूरा कुरआन लोहे महफूज़ से इस रात में उतरा गया, फिर हज़रत जिब्रील (अ०स०) इसे थोडा थोडा कर के 23 साल तक नबी करीम (स०अ०) पर नाजिल करते रहे और दूसरा मतलब ये है के नबी करीम (स०अ०) पर कुरआन करीम का नुज़ूल सबसे पहले शबे कद्र में शुरू हुआ | इस रात में इबादत करने का सवाब एक हज़ार महीने (83 साल 4 महीने ) इबा

Roze ki ibaadatein - रोज़े का वक़्त कैसे गुजारें

بِسمِ اللہِ الرَّحمٰنِ الرَّحِيم ” शुरू अल्लाह के नाम से जो सब पर मेहरबान है बहुत मेहरबान है ”     रोज़े के दौरान का वक़्त – रमज़ान का हर वक़्त क़ीमती है |  पुरे महीने में अल्लाह रब्बुल इज्ज़त का इनाम  व इकराम रोज़दारों पर बारिश की तरह बरसता है | इस महीने में कोई भी वक़्त खली नहीं गुज़ारनी चाहिए क्युकि इस महीने में नाकियों का सवाब 70 गुना बढ़ा दिया जाता है |   रोज़े का वक़्त किस तरह गुजारें – रोज़े में क्या इबादात करें और कैसे गुजारें, वो ये हैं – (1) कुरआन मजीद की तिलावत की कसरत करें, नबी करीम (स०अ०) हज़रत जब्रील (अ०स०) के हमराह कुरआन मजीद की तिलावत फरमाते थे | (2) नवाफिलों व इज्कार में खूब इज़ाफा करें | (3) किसी मुसलमानों की ज़रुरियात की फ़िक्र करें और परेशानों की मदद करें | (4) खुद भी किसी को तकलीफ़ न पहुचाएं और अगर कोई तकलीफ पहुचाये तो सब्र करें | (5) फुजूल बातों में वक़्त जाया नहीं करनी चाहिए मसलन किसी की गीबत,चुगली ,झूठ, ना – महरम लड़की/लड़के से बात करना, टीवी देखना और बिला उज्र दिन रात मोबाइल में लगे रहना वगैरह | (6) तौबा अस्तगफार की खूब कसरत करनी चाहिए | (7) पहला और तीसरा कालिमा की कसरत से ज़बान