بِسمِ اللہِ الرَّحمٰنِ الرَّحِيم ” शुरू अल्लाह के नाम से जो सब पर मेहरबान है बहुत मेहरबान है “ दावत कुबूल करने के हुकुक – दावत कुबूल करना हर मुसलमान का हक़ और सुन्नते रसूल अल्लाह (स०अ०) है | अगर कोई मुसलमान अपने मुसलमान भाई को खाने की दावत दे तो उसे चाहिए के उसकी दावत ख़ुश दिली से क़ुबूल करे | इसके मुताल्लिक हदीसें – हज़रत अबू हुरैरह (रज़ी०) फरमाते हैं कि हुजुर अक़दस (स०अ०) ने इरशाद फ़रमाया कि – जब तुम में से किसी की दावत की जाये तो उसे चाहिए की उस दावत को कुबूल कर ले, अब अगर वह शख्स रोज़े से है तो उसके हक़ में दुआ कर दे, यानी उसके घर जाकर उसके हक़ में दुआ कर दे और अगर रोज़े से नहीं है तो उसके साथ खाना खा ले | (तिरमिज़ी) हज़रत अली (रज़ी०) रिवायत करते हैं कि रसूल अल्लाह (स०अ०) ने इरशाद फ़रमाया – मुसलमान के दुसरे मुसलमान पर 6 हुकुक हैं | जब मुलाक़ात हो तो उसको सलाम करे, जब दावत दे तो उसकी दावत कुबूल करे, जब उसे छींक आए (और अल्हुम्दुलिललाह ) कहे तो उसके जवाब में यारहमुकल्लाह कहे, जब बीमार हो तो उसकी इयादत करे, जब इंतकाल कर जाये तो उसके ज़नाज़े के साथ जाए और उसके लिए वही पसंद करे जो अपने लिए पसंद क
तुम बेहतरीन उम्मत हो जो लोगों के लिए पैदा की गई हो, तुम नेकी का हुक्म देते हो और बुरी बातों से रोकते हो।(सुराह –अल ईमरान)