Itikaf ki Fazilat – एतिकाफ की नीयत और दुआ
بِسمِ اللہِ الرَّحمٰنِ الرَّحِيم
” शुरू अल्लाह के नाम से जो सब पर मेहरबान है बहुत मेहरबान है”
एतिकाफ़ –
एतिकाफ़ का लाफ्ज़ी माअना ठहरने के हैं | अल्लाह की रज़ा के लिए मस्जिद में ठहरे रहने का नाम एतिकाफ़ है | एतिकाफ़ का अह्तामाम ख़ास तौर पर रमज़ान के आखरी अशरे यानी 20 रमज़ान की मगरिब से शुरू होता है और ईद का चाँद देख कर ख़तम होता है |
अल्लाह तआला का इरशाद है –
” और हमने इब्राहीम और इस्माईल को ये ताकीद की के – तुम दिनों मेरे घर को उन लोगो के लिए पाक करो जो (यहाँ ) तवाफ़ करें और एतिकाफ़ में बैठे और रुकुह सजदा बजा लायें ” (सुरह बकरह, आयत 125)
हदीस –
हज़रत अम्मा आयेशा (रज़ी०) फरमाती हैं के नबी करीम (स०अ०) रमजान के आखरी अशरे का एतिकाफ़ फरमाते रहे, यहाँ तक के आप (स०अ०) की वफात हो गई उसके बाद आप (स०अ०) के अज्वाज़ मुतहरात एतिकाफ़ करती रहीं (बुख़ारी )
एतिकाफ़ के फायदे –
(1) एतिकाफ़ करने वाला अपने तमाम बदन और तमाम वक़्त अल्लाह तआला की इबादत के लिए वक्फ कर देता है |
(2) दुनिया के झगड़ों और बहुत से गुनाहों से महफूज़ रहता है |
(3) एतिकाफ़ की हालत में सोना भी इबादत में शुमार होता है |
(4) शब् ए कद्र जो हज़ार महीनो से अफज़ल है उसको नसीब होती है |
(5) एतिकाफ़ करने वाला अल्लाह का मेहमान होता है क्युकि मस्जिद अल्लाह का घर है और अल्लाह त’आला के हर में रहने वाला अल्लाह का मेहमान है |
एतिकाफ़ की फ़ज़ीलत –
नबी करीम (स०अ०) ने इरशाद फ़रमाया – जो शख्स रमज़ान में दस दिन का एतिकाफ़ करे तो उसका ये अमल दो हज और दो उमरों जैसा है |
एक और रिवायत में है के एतिकाफ़ करने वाले के तमाम गुनाह माफ़ कर दिए जाते हैं |
एतिकाफ़ की किस्में –
एतिकाफ़ की तीन किस्में हैं –
(1) वाजिब एतिकाफ़ –
किसी ने मन्नत मांगी की अगर फलां काम हो गया तो अल्लाह तआला के वासते तीन दिन का एतिकाफ़ करूंगा | अगर वो फलां काम हो गया तो उस शख्स पर एतिकाफ़ वाजिब होगा |
(2) सुन्नत ए मुअक्केदा एतिकाफ़ –
रमज़ान के आखरी अशरे का एतिकाफ़ सुन्नत ए मुअक्केदा है | और आखरी अशरे में एतिकाफ करना ज़रूरी है |
(3) मुस्तहब एतिकाफ़ –
मुस्तहब एतिकाफ़ साल में कभी भी नियत कर सकते हैं और एतिकाफ़ कर सकते हैं |
एतिकाफ़ की दुआ –
بسم الله دخلت و عليه توكلت و نويت سنت الاعتكاف۔ اللهم افتح لي ابواب رحمتكك
अल्लाह के नाम से दाखिल होता हु और उसी पर भरोसा करता हूँ और सुन्नत ए एतिकाफ़ की नियत करता हूँ | ए अल्लाह ! खोल दे मेरे लिए अपनी रहमत का दरवाज़ा
एतिकाफ़ में जो बातें जाएज़ है –
(1) क़ज़ा ए हाजत के लिए या अगर गुस्ल फ़र्ज़ हो गया हो तो मस्जिद से अपने मकान जाना जाएज़ है ख्वाह वह कितनी ही दूर हो |
(2) मस्जिद में खाना, पीना और सोना या कोई हाजत की चीज खरीदना बशर्ते के वह चीज़ मस्जिद में ना हो जाएज़ है और एतिकाफ़ की हालत में निकाह भी कर सकते हैं |
औरतों का एतिकाफ़ –
औरत अपने घर में जहाँ नमाज़ की जगह हो या पढ़ती है वही एतिकाफ़ की नियत करके बैठ जाये और वही रहे | हाजत जैसे पखाना पेशाब वगैरह के लिए ही जाये उसके अलावा दूसरी और कोई गरज़ के लिए नहीं जाना चाहिए |
अगर नमाज़ की जगह मुक़ररर न हो तो किसी एक ख़ास हिस्से तो मुक़ररर कर ले और वही एतिकाफ़ करे |
मसला –
बस्ती के किसी भी एक शख्स का एतिकाफ़ में बैठना ज़रूरी है अगर कोई ना बैठा तो पूरी बस्ती गुनाहगार होगी |
मसला –
मर्दों को जमाअत वाली मस्जिद ( जहाँ जमात की नमाज़ होती हो ) और औरतों को अपने घर के मुक़ररर जगह पर एतिकाफ़ करना चाहिए |
दीन की सही मालूमात कुरआन और हदीस के पढने व सीखने से हासिल होगी |(इंशाअल्लाह)
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