Zakat ke Masail hindi - ज़कात के फायदे
ज़कात के फायदे
(क़ुरआन व हदीस की रौशनी में )
जकात क्या है –
ज़कात के मसाइल और ज़कात के फायदे क्या है,ये हमारे लिए जानना बहुत ज़रूरी है
जकात इस्लाम का तीसरा रूकन (pillers) है। जिस पर जकात फ़र्ज़ है और उसने अदा ना की तो वह गुनाहगार होगा।
क़ुरान ए पाक में अल्लाह का इरशाद है –
अल्लाह तआला ने क़ुरान शरीफ़ में जगह जगह जकात अदा करने का हुक्म फ़रमाया है।
क़ुरान मजीद में 32 जगह नामज के साथ जकात अदा करने का हुक्म है।और जहां जहां सिर्फ जकात का हुक्म है वो इसके अलावा है।
“और नमाज़ कायम करो और जकात अदा करो और जो कुछ अपनी जानों के लिए कोई भलाई पहले से भेज दोगे,अल्लाह के पास पा लोगे।”
ज़कात के मुताल्लिक चाँद हदीसें –
नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया के जिसको अल्लाह तआला ने माल दिया फिर उसने जकात अदा नहीं किया तो कयामत के दिन उसका माल ज़हरीला और गंजा सांप की शक्ल बना दिया जाएगा,जिस के आंखों पर दो सियाह नुकते होंगे,वह सांप उसके गले में तौक की तरह लिपट जाएगा।फिर उसके जबड़े पकड़ कर नोचेगा,और फिर ये कहेगा की मैं तेरा माल हूं ,मैं तेरा खज़ाना हूं।
एक और जगह नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का पाक इरशाद है – आप ने फ़रमाया के जिस के पास सोना चांदी हो और उसमें से उसका हक अदा ना करें तो जब कयामत का दिन होगा तो उसको आजाब देने के लिए आग की तख्तियां बनाई जाएगी,फिर उसको दोज़क की आग में गर्म करके उसकी करवटों और माथो और पीठ को दाग दिया जाएगा।और फिर जब ठंडी हो जाएगी तो फिर से गर्म कर ली जाएगी।
हुज़ूर अकदस सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का इरशाद है – के जो शख्स तीन काम कर ले इस को ईमान का मज़ा आ जाए।
एक ये के सिर्फ अल्लाह जल्ला शनहू की इबादत करे, दूसरा ये के उसको अच्छी तरह जान ले कि अल्लाह के सिवा कोई माबुद नहीं।
और तीसरा ये के जकात को हर साल खुश दिली से अदा करे (बोझ ना समझे) इस में जानवरों की जकात में बड़ा जानवर या खुजली वाला जानवर या मरीज या घटिया क़िस्म का जानवर ना दे बल्कि दरमियानी दर्ज का जानवर दे।
अल्लाह जल्ले शनाहू जकात में तुम्हारे बेहतरीन माल नहीं चाहते लेकिन घटिया माल का भी हुक्म नहीं फरमाते।
कुछ और हदीसें –
” नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का इरशाद है – के बिला शूबह अल्लाह ने जकात इसलिए फ़र्ज़ की है कि, बाकी माल को पाकीज़ा बनाए और यह भी फ़रमाया की बिला शुबा तुम्हारे इस्लाम की तक्मील इसमें है की मालों की जकात अदा करो “
” नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया कि जो लोग जकात को रोक लेते हैं,अल्लाह उन पर सुखे की मुसीबत डाल देते हैं “
” एक दूसरी हदीस में है कि जो लोग जकात रोक लेते हैं उनकी सज़ा में बारिश रोक ली जाती है।अगर चौपाए जानवर ना होते तो बिल्कुल ही बारिश ना होती “
जकात किन पर फ़र्ज़ है?
जकात देने का कौन मस्तहिक हैं,सिर्फ मालदार को ही फ़र्ज़ नहीं बल्कि जो मर्द या औरत – साढ़े 52 तोला चांदी या साढ़े 7 तोला सोना हो या उनमें किसी एक कि कीमत के रुपए या उतने समान का मालिक हो।वो शरीयत के मुताबिक मालदार है और उसपर जकात फ़र्ज़ है।
मसला –
जकात फ़र्ज़ होने के लिए ये शर्त है कि उस माल पर साल गुजर जाए यानी साढ़े 52 तोला चांदी या साढ़े 7 तोला सोना हो या उनमें किसी एक कि कीमत के रुपए या उतने समान का मालिक हो और साल गुजर जाए। अगर साल पूरा होने से पहले माल जाता रहे तो फ़र्ज़ नहीं होगा।
मसला –
सोने चांदी के जेवर हो या बर्तन और चांदी का लगा हुआ कपड़ा या अलाहीदा चांदी या सोना हो, ये चीजें इस्तेमाल होती हो या एसे ही रखी हो गरज़ सोने चांदी की हर चीज में जकात फ़र्ज़ है।
एक मिसाल से समझे –
किसी के पास 100 रुपए थे,फिर साल पूरा होने से पहले पहले 50 रुपए और मिल गए तो उन 50 रुपियों का हिसाब अलग ना करें बल्कि जब पहले रखे 100 रुपए का साल पूरा होगा तो उस वक़्त इस 50 रुपए को मिलाकर 150 रुपियों का जकात देना होगा।
मसला –
ज़कात के पैसों से मस्जिद तामीर करना ,लावारिस मुर्दों के कारण दफन में लगाना दुरुस्त नहीं।
जकात अदा होने की शर्त ये है कि जिसको जकात देना दुरुस्त हो उसको जकात की रकम का मालिक बना दिया जाए।
“एक ये भी मसला समझ लें कि सय्यादों को जकात का पैसा देना दुरुस्त नहीं चाहे वो गरीब हों और उनको लेना भी हलाल नहीं।”
अहम मसला –
मा बाप, दादा दादी , नाना नानी, बेटा बेटी, पोता पोती, इन सब को जकात का रकम देने से जकात अदा नहीं होगी। जिन से साहिबे जकात पैदा है या जो उससे पैदा हुआ है दोनो सूरतों में अदा नहीं होगी।
जकात की नीयत के बैगैर रुपए दे दिया तो जकात अदा नहीं हुई,वह नफ्ली सदक़ा हुआ,अगर एसा हो जाए तो जकात फिर से अदा करें।जकात अदा करने के लिए ये ज़रूरी है कि जकात की नीयत की जाए या खास रकम जकात की नीयत से अलग रख दी जाए।
ज़कात का हिसाब चाँद के महीनो से –
जकात का हिसाब चाँद से है,यानी माल होने पर जब चांद के हिसाब से बारह महीने गुजर जाएं तो जकात फ़र्ज़ हो जाती है
बहुत से लोग अंग्रेजी महीनों से जकात का हिसाब रखते हैं, इसमें 10 दिनों का फर्क होता है।मसलन इंग्लिश कैलेंडर के हिसाब से 365 दिन हुए और इस्लामिक कैलेंडर के हिसाब से 355 दिनों का।
दीन की सही मालूमात कुरआन और हदीस के पढने व सीखने से हासिल होगी |(इंशाअल्लाह)
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