بِسْمِ اللهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِيْمِ
” शरू अल्लाह के नाम से जो सब पर मेहरबान है बहुत मेहरबान है “
हज़रत इदरीस (अ०स०) का कुरान मजीद में ज़िक्र –
हज़रत इदरीस (अ०स०) मशहूर नबीयों में से थे जिनका कुराने मजीद में ज़िक्र आया है|
कुराने मजीद में हज़रत इदरीस (अ०स०) का ज़िक्र 2 बार आया है –
” और याद करो कुरआन में इदरीस को ,बिला शुबा वह सच्चे नबी थे और बुलंद किया हमने उनका मकाम “(सुरह मरयम)
” और इस्माईल और इदरीस और ज़ुल्किफ्ल,इनमे से हर एक था सब्र करने वाला |(सुरह अंबिया)
हज़रत इदरीस (अ०स०) की ज़िन्दगी –
हज़रत इदरीस (अ०स०) का असल नाम अखनुब था,आप के वालिद का नाम यारिद और वालिदा का नाम बरकाना था | आप का लक़ब इदीस था यानी दर्स देने वाला, क्युकि दुनिया में सबसे पहले आप ने ही कलम का इस्तमाल किया और आप लोगों को लिखने पढने का दर्स दिया करते थे|
बाज़ रिवायात में आता है के इदरीस (अ०स०) बाबिल में पैदा हुए, बाद में आप हिजरत करके मिस्र में मुकीम हुए और वही तब्लीग का काम जारी रखा, आप ने इल्म हज़रत शीश (अ०स०) से हासिल की क्युकि हज़रत इदरीस (अ०स०) उसी ज़माने से थे, फिर अल्लाह ने आप (अ०स०) को नबूवत से सरफ़राज़ फ़रमाया |
उस दौर में भी बदमाशों और फ़सादियों की तादात अच्छी खासी थी,हज़रत इदरीस (अ०स०) ने तबलीग का काम शुरू किया,ज्यादा तक आप की बात ना मानी और बहुत कम लोग ही आप पर ईमान लाये|
हज़रत इदरीस (अ०स०) का इल्म –
हज़रत इदरीस (अ०स०) पहले हस्ती थे जो इल्मे हिकमत और इल्मे नुजूम की शुरुवात की ,आप (अ०स०) इल्म व हिकमत अपने तलबा को सिखाते,हज़रत इदरीस अलैहि सलाम ने दीने इलाही के पैग़ाम के अलावा तमद्दुनी रियासत और शहरी ज़िंदगी, तमद्दुनी तौर-तरीक़ों की तालीम व तलक़ीन की और उनके माहिर तालिबे इल्मों ने कम व बेश दो सौ बस्तियां आबाद कीं|
हज़रत इदरीस (अ०स०) की खिलाफत –
हज़रत इदरीस (अ०स०) इल्म व अमल के एतबार से अल्लाह की मख्लूख को तीन तब्को में बांट दिया –
(1) कहिन – काहिन सबसे पहला और ऊंचा दर्जा करार पाया, इसलिए कि वह अल्लाह तआला के सामने अपने नफ़्स के अलावा बादशाह और रियाया के मामलों में भी जवाबदेह है।
(2) बादशाह – बादशाह का दूसरा दर्जा रखा गया इसलिए कि वह नफ़्स और राज्य के मामलों के बारे में जवाबदेह है|
(3) रियाया – रियाया सिर्फ़ अपने नफ़्स के लिए जवाबदेह है|
हज़रत इदरीस (अ०स०) की नसीहत –
(1) अल्लाह की बेपनाह नेमतों का शुक्रिया इंसानी ताक़त से बाहर है।
(2) जो इल्म में कमाल और अमले सालेह का खवाइशमंद हो,उसको जहालत के असबाब और बद किरदारी के क़रीब भी ना जाना चाहिए
(3) दुनिया की भलाई ‘हसरत’ है और बुराई ‘नदामत’।
(4) अल्लाह की याद और अमले सालेह के लिए ख़ुलूसे नीयत शर्त है।
(5) न झूठी क़स्में खाओ, न अल्लाह तआला के नाम को कस्मो के लिए तख्ता-ए-मश्क़ बनाओ और न झूठों को कस्मे खानें पर आमादा करो, क्योंकि ऐसा करने से तुम भी गुनाह में शरीक हो जाओगे।
(6) अपने बादशाहों की (जो कि पैग़म्बर की तरफ़ से शरीअत के हुक्मों के नाफ़िज़ करने के लिए मुकरर किए जाते हैं) इताअत करो और अपने बड़ों के सामने पस्त रहों और हर वक़्त अल्लाह की तारीफ़ में अपनी जुबान को तर रखो।
(7) हिकमत रूह की ज़िंदगी है।
(8) दूसरों की ख़ुश ऐशी पर हसद न करो, इसलिए कि उनकी यह मस्रूर ज़िंदगी कुछ दिनों की है।
(9) जलील पेशों को अख्तिहर ना करो|
(10) जो ज़िन्दगी की ज़रूरतों की ज्यादा तालाब रखता हो वो कभी कानेअ नही रहा|
दीन की सही मालूमात कुरआन और हदीस के पढने व सीखने से हासिल होगी |(इंशाअल्लाह)
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दुआ की गुज़ारिश
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