بِسمِ اللہِ الرَّحمٰنِ الرَّحِيم
” शुरू अल्लाह के नाम से जो सब पर मेहरबान है बहुत मेहरबान है “
सुरह बकरह की आखरी आयतें और फ़ज़ीलत –
सुरह बकरह की आखरी दोनों आयात की अहादीस में बड़ी फ़ज़ीलत आई है –
नबी करीम (स०अ०) ने फ़रमाया – जो शख्स सुरह बकरह की आखरी दो आयतें रात को पढ़ लेता है तो ये उसके लिए काफ़ी हो जाती है | यानी अल्लाह तआला उसकी हिफाज़त फरमाता है | (सहीह बुख़ारी )
नबी करीम (स०अ०) को मेराज की रात जो तीन चीजें मिलीं, उनमे से एक सुरह बकरह की आखरी दो आयात भी हैं |(सहीह मुस्लिम )
कई रवायत में यह भी वारिद है के – इस सूरत की आखरी आयात आप (स०अ०) को एक खजाने से अता की गई हैं जो अर्श ए इलाही के नीचे है |
आयत का खुलासा –
अहादीस में आता है के जब ये आयत नाजिल हुई तो सहाबा (रज़ी०) बड़े परेशान हुए | उन्होंने दरबारे रिसालत में हाज़िर होकर अर्ज़ किया या रसूल अल्लाह ! नमाज़, रोज़ा, व जिहाद वगैरह ये सारे अमाल, जिनका हमें हुक्म दिया गया है, हम बजा लाते हैं | क्युकि ये हमारी ताक़त से बाला नहीं है | लेकिन दिल में पैदा होने वाले ख़यालात और वस्वसों पर तो हमारा अख्तियार ही नहीं है और वह तो इंसानी ताक़त से ही मावरा है | लेकिन अल्लाह तआला ने उन पर भी मुहासबा का एलान फरमा दिया है |नबी करीम (स०अ०) ने फ़रमाया – फि – अल-हाल तुम ( समेअना व अताअना ) ही कहो | चुनांचे सहाबा (रज़ी०) के जज्बा समअ व ताअत को देखते हुए अल्लाह तआला ने आयत (لَا يُكَلِّفُ ٱللَّهُ نَفْسًا إِلَّا وُسْعَهَا ) यानी अल्लाह तआला किसी जान को उसकी ताक़त से ज्यादा तकलीफ़ नहीं देता ) से मनसुख फरमा दिया | (इब्ने कशीर )
لِّلَّهِ مَا فِى ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَمَا فِى ٱلْأَرْضِ ۗ وَإِن تُبْدُوا۟ مَا فِىٓ أَنفُسِكُمْ أَوْ تُخْفُوهُ يُحَاسِبْكُم بِهِ ٱللَّهُ ۖ فَيَغْفِرُ لِمَن يَشَآءُ وَيُعَذِّبُ مَن يَشَآءُ ۗ وَٱللَّهُ عَلَىٰ كُلِّ شَىْءٍ قَدِيرٌ
तर्जुमा –
आसमान और ज़मीन की हर चीज़ अल्लाह तआला की मिलकियत है | तुम्हारे दिलों में जो कुछ है उसे तुम ज़ाहिर करो या छुपाओ, अल्लाह तआला उसका हिसाब तुमसे लेगा | फिर जिसे चाहे बक्शे और जिसे चाहे सज़ा दे और अल्लाह तआला हर चीज़ पर कादिर है |
तफ़सीर –
मुस्लिम की हदीस में नबी करीम (स०अ०) का कौल है के – ( अल्लाह तआला ने मेरी उम्मत से जी में आने वाली बातों को माफ़ कर दिया है | अलबत्ता उनपर गिरफ्त होगी जिनपर अमल किया जाये या जिन का इज़हार ज़बान से कर दिया जाये )
इससे मालूम हुआ के दिल में दिल में गुज़रने वाले ख़यालात पर मुहासबा नहीं होगा, सिर्फ सिर्फ उन पर मुहासबा होगा जो पुख्ता अज्म व इरादा में ढल जाये या अमल अख्तियार कर ले |
ءَامَنَ ٱلرَّسُولُ بِمَآ أُنزِلَ إِلَيْهِ مِن رَّبِّهِۦ وَٱلْمُؤْمِنُونَ ۚ كُلٌّ ءَامَنَ بِٱللَّهِ وَمَلَٰٓئِكَتِهِۦ وَكُتُبِهِۦ وَرُسُلِهِۦ لَا نُفَرِّقُ بَيْنَ أَحَدٍ مِّن رُّسُلِهِۦ ۚ وَقَالُوا۟ سَمِعْنَا وَأَطَعْنَا ۖ غُفْرَانَكَ رَبَّنَا وَإِلَيْكَ ٱلْمَصِيرُ
तर्जुमा –
रसूल ईमान लाया उस चीज़ पर जो उसकी तरफ अल्लाह तआला की जानिब से उतरा और मोमिन भी ईमान लाए, ये सब अल्लाह तआला और उस के फरिश्तों पर और उसकी किताबों पर और उसके रसूलों पर ईमान लाए, उसके रसूलों में से किसी में हम तफरीक नहीं करते, उन्होंने कह दिया के हमने सुना और अताअत की, हम तेरी बख्शीश तलब करते हैं ए हमारे रब ! और हमें तेरी तरफ लौटना है |
तफ़सीर –
इस आयत में फिर उन इमानियात का ज़िक्र है जिन पर अहले ईमान को ईमान रखने का हुक्म दिया गया है |
لَا يُكَلِّفُ ٱللَّهُ نَفْسًا إِلَّا وُسْعَهَا ۚ لَهَا مَا كَسَبَتْ وَعَلَيْهَا مَا ٱكْتَسَبَتْ ۗ رَبَّنَا لَا تُؤَاخِذْنَآ إِن نَّسِينَآ أَوْ أَخْطَأْنَا ۚ رَبَّنَا وَلَا تَحْمِلْ عَلَيْنَآ إِصْرًا كَمَا حَمَلْتَهُۥ عَلَى ٱلَّذِينَ مِن قَبْلِنَا ۚ رَبَّنَا وَلَا تُحَمِّلْنَا مَا لَا طَاقَةَ لَنَا بِهِۦ ۖ وَٱعْفُ عَنَّا وَٱغْفِرْ لَنَا وَٱرْحَمْنَآ ۚ أَنتَ مَوْلَىٰنَا فَٱنصُرْنَا عَلَى ٱلْقَوْمِ ٱلْكَٰفِرِينَ
तर्जुमा –
अल्लाह तआला किसी जान को उसकी ताक़त से ज्यादा तकलीफ़ नहीं देता, जो नेकी वह करें वह उसके लिए और जो बुराई वह करे वह उसपर है, ए हमारे रब ! अगर हम भूल गए हों या खता की हो तो हमें न पकड़ना, ए हमारे रब ! हम पर वह बोझ न डाल जो हमसे पहले लोगों पर डाला था, ए हमारे रब ! हमपर वह बोझ न डाल जिसकी हमें ताक़त न हो और हम से दरगुज़र फरमा ! और हमें बख्श दे और हमपर रहम कर ! तू ही हमारा मालिक है, हमें काफ़िरों की कौम पर गलबा अता फरमा |
तफ़सीर –
इस आयत में अल्लाह तआला की रहमत व शफ़क़त और उसके फज़ल व करम का तज़किरा है के उसने इंसानों को किसी आयसी बात का मुकल्लफ़ नहीं किया है जो उनकी ताक़त से बाला हो |
दीन की सही मालूमात कुरआन और हदीस के पढने व सीखने से हासिल होगी |(इंशाअल्लाह)
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दुआ की गुज़ारिश
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