Shahadat in Islam – शहादत का मतलब

शहादत क्या है –

शहादत इस्लाम का पहला रुक्न (Pillers of Islam) है|

शहादत अरबी लफ्ज़ है जिसका मतलब गवाही देना,यानी ये गवाही देना के अल्लाह के सिवा कोई  माबूद यानी  कोई इबादत के लायक नही और मुहम्मद (स०अ०) अल्लाह के बन्दे और रसूल हैं|

कोई इन्सान उस वक़्त तक मुसलमान या इस्लाम में दाखिल नही  हो सकता जब तक ये ना मान ले के अल्लाह एक है और वही तनहा इबादत के लायक है और  नबी करीम (स०अ०) उसके आखरी रसूल हैं|

 

لَا إِلٰهَ إِلَّا الله مُحَمَّدٌ رَسُولُ الله

ला इलाहा इल्लल्लाह मुहम्मदुन रसूलुल्लाह

नही है कोई माबूद अल्लाह के सिवा मुहम्मद (स०अ०) अल्लाह के रसूल हैं

 

शहादत की बुन्याद यही  उपर लिखा हुआ पहला कलमा है ,ये कलमा अल्लाह के नज़दीक बहुत वजनी है|

 

पहला कलमा की फ़ज़ीलत – 

” नबी करीम (स०अ०) का इरशाद है के उस पाक ज़ात की क़सम जिस के कब्जे में मेरी जान है,अगर तमाम असमान और ज़मीन और जो लोग उन के दरमियान हैं,और वह सब जो चीजें उनके दरमियान है,और वो सब कुछ उन के नीचे हैं,वो सब के सब एक तराजू में रख दिया जाये और दुसरे तराजू में पहला कलमा यानि ला इलाहा इल्लललाह को रख दिया जाये,तो कलमा तय्यब वाले तराजू का वज़न बढ़ जायेगा “

“हुजुर पाक (स०अ०)  ने इरशाद फ़रमाया के मरने वाले को कलमा शरीफ़ ला इलाहा इल्लल्लाह की तलकीन किया करो,जो शख्स मरते वक़्त is कलमा to पद लेता है तो इस पाक कलमा की बरकत से जन्नत में ज़रूर दाखिल होगा “

” हज़रत जाबिर (रज़ी०) से रवायत है के नबी करीम (स०अ०) ने इरशाद फ़रमाया तमाम इज्कर से अफज़ल ज़िक्र ला इलाहा इल्लल लाह है और तमाम दुआओ में अफज़ल दुआ अल्हुम्दुलिलाह है “

 

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