MASALE MASAIL

Ahkam e tijarat Hindi – तिजारत कैसी होनी चाहिए

 

بِسمِ اللہِ الرَّحمٰنِ الرَّحِيم

शुरू अल्लाह के नाम से जो सब पर मेहरबान है बहुत मेहरबान है

 

तिजारत क्या है –

तिजारत एक सुन्नती कारोबार है, यानी हमारे प्यारे नबी (स०अ०) ने अपनी ज़िन्दगी में तिजारत का काम किया है, ये आपकी सुन्नत है |

तिजारत के जो बुनयादी उसूल नबी करीम (स०अ०) ने तजवीज़ फरमाए उन उसूलों के तहत जो तिजारत और लेन – देन होगा वह तो इबादत में शामिल होगा, वरना खिलाफ वर्जी की सूरत में दुनिया में तो शायद दौलत इकट्ठी हो जाएगी मगर आख़िरत में बदतरीन अज़ाब मूनतज़िर होगा |

 

अल्लाह तआला का इरशाद है –

नाप और तौल पूरी पूरी किया करो इन्साफ के साथ  (सुरह – इनआम)

के तुम तौलने में ज़ुल्म न करो और इन्साफ के साथ वज़न को ठीक रखो और तौल में कमी न करो (सुरह – रहमान )

 

तिजारत के चंद फराएज़ और हुकुक
(1) अदल –

ताजिर को चाहिए के नाप तौल में अदल कायम करे | कुरआन मजीद में अल्लाह तआला का इरशाद है – नाप और तौल पूरी किया करो इन्साफ के साथ  (सुरह – इनआम)

नाप तौल में कमी ज़दती को कुरआन ने शदीद हराम क़रार दिया है | नबी करीम (स०अ०) ने एक मर्तबा कोई चीज़ खरीदी तो वज़न करने वाले से फ़रमाया – तौलो और झुकता हुआ तौलो यानी तौल कर दो मगर पलड़ा क़दीम झुका हुआ हो (अबू – दाऊद )

एक बुख़ारी की हदीस में ब-रवायत जाबिर (रज़ी०) है के रसूल अल्लाह (स०अ०) ने फ़रमाया – अल्लाह तआला उस शख्स पर रहमत करे जो बेचने के वक़्त नर्म हो के हक़ से ज्यादा दे और ख़रीदने के वक़्त नर्म हो के हक़ से ज्यादा न ले बलके कुछ मामूली कमी भी हो तो राज़ी हो जाये |

(2) मिलावट ना करे –

एक दफह नबी करीम (स०अ०) बाज़ार में एक गल्ले के ढेर के पास से गुज़रे और उसमे अपना हाथ दाखिल किया और अंदर से तह में नमी महसूस की, पूछा ! ये क्या बात है ? अर्ज़ किया गया के बारिश की वजह से एसा हो गया है | आप (स०अ०) ने फ़रमाया के – नमी वाले हिस्से को उपर क्यों नहीं कर देते के लोग देख लें |

और फ़रमाया – जो शख्स धोखा देता वह हमारी जमात से ख़ारिज है (मुस्लिम)

जो दूकानदार और ताजिर जान बुझ कर किसी शय में मिलावट करते हैं फिर उसे बगैर ज़ाहिर किये फरोख्त कर देते हैं वह कितना बड़ा धोखा और ज़ुल्म करते हैं और उसपर शदीद गिरफ्त होगी | कौमे शोएब (अ०स०) इसी नाप तौल और मिलवात की वजह से हलाक़ हुई थी |

 

(3) एबदार सामान का एब बयान करे, पर्दा पोशी न करे –

दुकानदार को चाहिए के वह बेचने वाले सामान के तमाम एबों को बयान करे और खरीदार को वाजेह कर दे के माल/सामान में ये कमी बेसी है |

हज़रत जरीर बिन अब्दुल्लाह (रज़ी०) जब कोई शय बेचते तो खरीदार को माल के अयूब खोल खोल कर बयान कर देते और कहते के मैंने फ़र्ज़ अदा कर दिया है अब खरीदना ना खरीदना तुम्हारे अख्तियार में है | लोगों ने कहा के आप इस तरह गराह्कों को बद्ज़न करते रहे तो तिजारत कैसे फ़रोग होगा ? आप का जवाब था – हम आं-हज़रत (स०अ०) के दस्ते हक़ परस्त पर इस बात का अहद कर चुके हैं के हर मुसलमान की खैर खवाही मल्हुज़ रहेगी | (बुख़ारी )

 

(4) माल की बेजा तारीफ न करे –

दूकानदार को अपने माल की बेजा तारीफ़ नहीं करनी चाहिए क्युकि उसके हर कौल व फ़ेल का मुहासबा होगा |

अल्लाह तआला का इरशाद है – कोई लफ्ज़ उसकी ज़बान से नहीं निकलता जिसे महफूज़ करने के लिए चौकस निगरान (फ़रिश्ता) मौजूद न हो |

 

(5) माल को जमा (ज़खीरा) न करे –

माल को खरीद कर ज़खीरा करना के उसे बाद में ज्यादा कीमत पर बेचा जाये, हुजुर (स०अ०) ने इसकी शदीद मज़म्मत फरमाई है | इर्शादे गरामी है –  जब किसी ने गल्ला या अनाज 40 दिन तक रोके रखा वह समझ ले के उसने अल्लाह तआला से अपना मन्क़तह कर लिया और अल्लाह ने उस से अपना रिश्ता मन्क़तह कर लिया |

ज़खीरा करना इतना बड़ा गुनाह है के खैरात से भी उसका कफ्फारह नहीं हो सकता |

 

(6) अहद की पाबन्दी –

अल्लाह तआला फरमाता है – अहद की पूछ होगी (सुरह – बनी इसराईल)

वादा खिलाफी बड़ी बुराई है | एक हदीस में है के मुनाफ़िक़ की तीन निशानियाँ हैं – जब बोले तो झूट बोले, जब वादा करे खिलाफ़ करे और जब अमानतदार बनाए ख़यानत करे | अगरचे वह नमाज़ पढता हो, रज़ा रखता हो और समझता हो के वह मुसलमान है (मुस्लिम)

 

(7) कम मुनाफा –

हज़रत अली (रज़ी०) कुफा के बाज़ार से गुज़रते तो फरमाते – ए लोगों ! थोड़े मुनाफे को वापस न करो क्युकि ज्यादा मुनाफा से महरूम रहोगे |

लोगों ने अब्दुररहमान बिन औफ़ (रज़ी०) से पूछा – के आप की अमीरी का बाअस क्या है ? आप ने कहा के – मैं थोड़े मुनाफे को भी वापस नही करता |

 

(8) ज्यादा क़सम न खाए –

हदीस में है के रसूल अल्लाह (स०अ०) ने फ़रमाया – तुम बेचने में ज्यादा क़सम खाने से बचो यानी इस ख़याल से के हमारा माल खूब बीके बहुत कसमें न खाओ | क्युके ज्यादा क़सम खाने में कोई न कोई क़सम ज़रूर झूठी निकलेगी  और फिर इससे बे बरकती होती है और अल्लाह के नाम की बे अदबी भी होती है |

 

(9) ख़रीदार की खैर खवाही करे –

हज़रत जरीर बिन अब्दुल्लाह (रज़ी०) कहते हैं के मैंने रसूल अल्लाह (स०अ०) से इस बात पर बेअत की के पाबन्दी के साथ नमाज़ पढूंगा, ज़कात अदा करूंगा और मुसलमानों के हक़ में खैर खवाही करूँगा | (बुख़ारी )

 

 

दीन की सही मालूमात  कुरआन और हदीस के पढने व सीखने से हासिल होगी |(इंशाअल्लाह)

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