QURAN MAZEED

Surah Ikhlas Tafseer in Hindi – तफ़सीर सुरह इख्लास

सुरह इख्लास क्यों नाजिल हुआ – 

सुरह इखलास मक्की सूरत है और इसमें चार आयतें है |

बाज़ काफ़िरों ने हुजुर (स०अ०) से पूछा था के आप जिस खुदा की इबादत करते हैं,वह कैसा है ? उसका हसब – नसब बयान करके इसका ताआरुफ़ कराएं | इस के जवाब में ये सूरत नाजिल हुई | (रुहुल मानी ,तबरानी )

 

इस सूरत के पढ़ने की फ़ज़ीलत –

 

” यह सूरत बड़ी फ़ज़ीलत की हामिल है,इसे नबी (स०अ०) ने एक तिहाई कुरआन क़रार दिया है और इसे रात को पढने की तरगीब दी है ” (बुख़ारी)

” बाज़ सहाबा (रज़ी०) हर रकात में दीगर सूरतों के साथ इसे भी ज़रूर पढ़ते थे,जिस पर नबी (स०अ०) ने उन्हें फ़रमाया – तुम्हारी इसके साथ मुहब्बत तुम्हे जन्नत में दाखिल कर दे गी ” (बुख़ारी)

 

 

सुरह इखलास – 

 

 بِسْمِ اللَّهِ الرَّحْمَٰنِ الرَّحِيمِ

शुरू अल्लाह के नाम से जो सब पर मेहरबान है, बहुत मेहरबान है 

 

قُلْ هُوَ اللَّهُ أَحَدٌ

कह दो : बात ये है के अल्लाह हर लिहाज़ से एक है 

 

तफ़सीर –

ये कुरआने करीम के लफ्ज़  أَحَدٌ का तर्जुमा करने की कोशिश की गई है | सिर्फ ” एक ” का लफ्ज़ उसके पुरे माअनी ज़ाहिर नही करता | 

हर लिहाज से एक होने का मतलब यह है के उस की  ज़ात इस तरह एक है के उस के न अजज़ा हैं,ना हिस्से हैं,और ना उसकी सिफात किसी और में पाई जाती है | वह अपनी ज़ात में भी एक है और अपनी सिफात में भी |

 

 اللَّهُ الصَّمَدُ

अल्लाह ही एसा है के सब उसके मोहताज हैं,वह किसी का मोहताज नही 

 

तफ़सीर –

अरबी में समद उसको कहते हैं जिस से सब लोग अपनी मुश्किलात में मदद लेने के लिए रुज़ुह करते हों  और वह खुद किसी का मोहताज ना हो | आम तौर पर इस लफ्ज़ का तर्जुमा ” बे – नियाज़ ” किया जाता है लेकिन वह उस के सिर्फ एक पहलु को ज़ाहिर करता है के वो किसी का मोहताज नही है | इसलिए यहाँ एक लफ्ज़ से तर्जुमा करने के बजाये उसका पूरा मफ़हुम बयान किया गया |

 

لَمْ يَلِدْ وَلَمْ يُولَدْ

ना उस की कोई औलाद है और ना वह किसी की औलाद है  

 

तफ़सीर –

यह उन लोगों की तरदीद है जो फरिश्तों को अल्लाह तआला की बेटियां कहते थें,या हज़रत इसा (अ०स०) को अल्लाह तआला का बेटा क़रार देते थें |

 

وَلَمْ يَكُنْ لَهُ كُفُوًا أَحَدٌ

और उसके जोड़ का कोई नहीं 

 

तफ़सीर –

यानी कोई नहीं है जो किसी मआमले  में उस की बराबरी या हम्सरी कर सके |

 

सूरत का खुलासा – 

 

इस सूरत की उन चार मुख़्तसर आयातों में अल्लाह तआला की तौहीद को इन्तहाई जामेह अंदाज़ में बयान फ़रमाया गया है –

(1) पहली आयत में उनकी तरदीद है जो एक से ज्यादा खुदाओं के काएल है |

(2) दूसरी आयत में उन की तरदीद है जो अल्लाह तआला को मानने के बावजूद किसी और को अपना मुश्किल कुशा,करसाज़ या हाजत रवा क़रार देते हैं |

(3) तीसरी आयत में उनकी तरदीद है जो अल्लाह तआला के लिए औलाद मानते हैं 

(4) और चौथी आयत में उन लोगों का रद्द किया गया है जो अल्लाह अआला की किसी भी सिफत में किसी और की बराबरी के कायल हैं |मसलन – बाज़ मजुसियों का कहना ये था के रौशनी का खालिक कोई और है और अँधेरा का खालिक कोई और है |

इसी तरह इस मुख़्तसर सूरत ने शिर्क की तमाम सूरतों को बातिल करार दे कर खालिस तौहीद साबित की है इसलिए इस सूरत को सूरत – इखलास कहा जाता है |

 

अल्लाह रब्बुल इज्ज़त इस सूरत को पढने और इसके सारी फ़ज़ीलतों को हासिल करने की तौफीक अता फरमाए – अमीन 

 

दीन की सही मालूमात  कुरआन और हदीस के पढने व सीखने से हासिल होगी |(इंशाअल्लाह)

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दुआ की गुज़ारिश

 

 

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