QASAS UL ANBIYA

Hazrat Ibrahim a.s ka Qissa – क़िस्सा हज़रत इब्राहीम अ०स०

بِسمِ اللہِ الرَّحمٰنِ الرَّحِيم

शुरू अल्लाह के नाम से जो सब पर मेहरबान है बहुत मेहरबान है

 

हज़रत इब्राहीम (अ०स०)

हज़रत इब्राहीम (अ०स०) एक मशहूर और अज़ीमो-शान नबी व रसूल हैं, जिनका ज़िक्र करआन मजीद में कसरत से आया है | आप (अ०स०) का कुरआन मजीद में 25 सूरतों की 63 आयतों और 73 मक़ामात पर ज़िक्र आया है और ये बात इब्राहीम (अ०स०) के बुलंद मक़ाम होने की दलालत करती है | आपको खलील लुल अल्लाह यानी अल्लाह के दोस्त का लक़ब मिला |

हज़रत इब्राहीम (अ०स०) के वालिद का नाम आज़र था, आप (अ०स०) साम बिन नुह (अ०स०) की औलाद से हैं | आप की पैदाइश इराक़ के मशहूर शहर बाबिल में हुई | वहां बुत परस्ती आम हो चुकि थी और वहां का हुक्मरान भी एक काफ़िर था जिसका नाम नमरूद था |

 

बाप को इसलाम की दवात –

इब्राहीम (अ०स०) ने एक लम्हे के लिए भी बुतों की पूजा नहीं की थी, आपने अपनी कौम को बुतों की पूजा करते देखा तो उनको मलामत की, एक अल्लाह की तरफ दावत दी और दावत की इब्तेदा उन्होंने अपने बाप से की,

अल्लाह तआला सुरह मरयम में फरमाता है –

ए नबी ! किताब में इब्राहीम का ज़िक्र कर बेशक वह सच्चा नबी था | जब उसने अपने बाप से कहा – ए मेरे बाप ! बेशक वह इल्म मुझे अता हुआ है जो तुम्हे हासिल नही इसलिए मेरी इताअत करें | मैं आपको सीधा रास्ता दिखाउंगा | ए मेरे बाप ! शैतान की इबादत ना करें, बेशक शैतान अल्लाह का नाफरमान है |

मगर अफ़सोस, आज़र पर इब्राहीम (अ०स०) की नसीहतों का कोई असर न हुआ और अपने बेटे हज़रत इब्राहीम (अ०स०) से कहने लगा – अगर तू बुतों की बुराई करने से बाज़ न आएगा तो मैं तुझको पत्थर मार कर हलाक़ कर दूंगा और कहा – तू मुझसे एक मुद्दत तक दूर हो जा यानी मुझसे इतना दूर हो जा के कभी नज़र न आये |

इब्राहीम (अ०स०) ने अपने बाप से नरमी और मेहरबानी करते हुए कहा – आप पर सलामती हो, मैं अपने रब से आप के लिए बक्शीश तलब करता रहूँगा लेकिन बाद में उनपर वाजेह हो गया के वो तो अल्लाह का दुश्मन है तो इब्राहीम (अ०स०) उससे बे-ताअल्लुक हो गए |

 

कौम को तौहीद की दावत –

जब आप (अ०स०) ने अपने कौम को तौहीद की दावत दी उस वक़्त आप नौजवान थे | तब आप की उम्र 16 साल थी | आप उनके बुत परस्ती वाले अमल से बहुत दुखी होते थे  और उनके बुतों को तोड़ देने की धमकी देते थे |

 

इब्राहीम (अ०स०) का बुतों को तोडना –

हज़रत इब्राहीम (अ०स०) अपनी कौम को उनके बुतों को तोड़ने की एलानिया धमकी दिया करते थे | आखिरकार ईद का दिन आ गया, उस दिन लोग नए – नए पकवान पकाते और अपने बुतों के सामने रखा करते थे फिर शहर के बाहर खुले मैदान में जमा होते, खेलते – कूदते और खुशियाँ मनाते और शाम को जब घर आते तो अपने बुतों के पास रखे खाने को तबर्रुक समझकर खा जाते |

अपने मामुल के मुताबिक ईद की तय्यारी कर ली, इब्राहीम (अ०स०) को साथ चलने को कहा , आप (अ०स०) असमान की तरफ इशारा करके कहा – मैं  बीमार हु | चुनांचे वो लोग आप को छोड़ कर चले गए |

हज़रत इब्राहीम (अ०स०) उन बुतों के पास गए, देखा के उनके सामने खाना पड़ा है, सबके खाना लाने की वजह से वहां खाना बहुत ज्यादा था, फिर इब्राहीम (अ०स०) ने उन बुतों से मुखातिब हो कर कहा के – इतना सारा खाना पड़ा है, तुम इसको खाते क्यों नहीं, तुम्हे क्या हो गया है के बात तक नहीं करते फिर एक कुल्हाड़े से उन बुतों के टुकड़े – टुकड़े कर दिए, लेकिन बड़े बुत को छोड़ दिया ताके सब उसी की तरह रुजुह करें |

 

हज़रत इब्राहीम (अ०स०) और मुशरिकीन की गुफ्तगू –

जब मुशरिकीन मेले से वापस आये तो अपने बुतों को देखा के वे सब टूटे अवंधे मुह पड़े हैं, वह हैरान रह गए के ये कैसे हो गया | उन्होंने आपस में कहने लगे ये किस का काम है | उन्हीं में से कुछ लोगों को ख्याल आया के इब्राहीम ने कहा था के वह बीमार हैं और उन्होंने अपनी बुतों की मुज़म्मत करने को कहा था | सब ने ये मशवरा किया के इब्राहीम (अ०स०) को बुलाया जाये और उनको सज़ा दी जाये |

चुनांचे सब जमा हुए और इब्राहीम (अ०स०) को बुलाया गया | कौम के लोगों ने इब्राहीम (अ०स०) से कहने लगे के सच बता क्या तूने ये सब किया है, जवाब में इब्राहीम (अ०स०) ने कहा – ये काम तो इस बड़े बुत का है | मुझसे क्यों पूछते हो तुम अपने माबुदों से क्यों नहीं पूछ लेते | वो सब सोच में पड़ गए फिर कहने लगे, ए इब्राहीम ! क्या तुम्हे पता नही ये बे-जुबान हैं ये बोल नही सकते | फिर इब्राहीम (अ०स०) बोले तुम उस चीज़ की इबादत करते हो जो तुम्हे कुछ नफा न दे सके और न नुक्सान पंहुचा सके, ताअज्जुब है तुम पर और उनपर जो अल्लाह के सिवा पुकारते हैं | क्या तुम में बिलकुल अक्ल नहीं | इस सब के बावजूद भी वह कुफ्र पर डटें रहे |

 

इब्राहीम (अ०स०) का आग में डाला जाना और आग सलामती के साथ ठंडी हो जाना –

इतने वाजेह दलील के बावजूद भी वो कुफ्र पर कायम रहे और हज़रत इब्राहीम (अ०स०) को आग में डालने का इरादा किया |

एक मैदान का इतेखाब किया फिर उस मैदान को पत्थरों से घेर दिया और सबको हुक्म दिया के लकड़ियाँ जमा करके उस घेरे में रखा जाये चुनांचे लकड़ियाँ जमा की गई | लकड़ियाँ इतनी जमा हुई के ज़मीन तक नज़र नहीं आती थी | फिर उन लकड़ियों को आग लगाई गई |

जब आग़ के शोले असमान से बातें करने लगे तो हज़रत इब्राहीम (अ०स०) को आग में डालने के लिए एक झुला तैयार किया और उसमे इब्राहीम (अ०स०) को रखा गया | उस वक़्त आप (अ०स०) ने ये दुआ पढ़ी –

                    ”  हस बुनल लाहु व नेमल वकील “

                    ”  हमें अल्लाह काफी है और वही बेहतरीन कारसाज़ है “

बाज़ रिवायत में आया है के जब इब्राहीम (अ०स०) को आग में डाला जाने लगा तो हज़रत जिब्रील (अ०स०) आये और कहा – ए इब्राहीम ! अगर कोई हाजत है तो मैं  हाजिर हूँ, इब्राहीम (अ०स०) ने कहा – अगर तुम अपनी मर्ज़ी से आये हो तो मुझे तुम्हारी कोई ज़रूरत नहीं |

चुनांचे जब इब्राहीम (अ०स०) को आग में डाला गया तो वह अल्लाह के हुक्म से सलामती के साथ ठंडी हो गई |

बाज़ रिवायतों में है के इब्राहीम (अ०स०) फ़रमाया करते थे – मुझे उन दिनों जो राहत व सुकून था वैसा आग से निकलने के बाद नहीं हुआ | (सुभानाल्लाह)

इतना बड़ा मोजज़ा देखने के बा-वजूद सिर्फ हज़रत लूत (अ०स०) के अलावा किसी ने ईमान ना लाया |

 

नमरूद का हज़रत इब्राहीम (अ०स०) से गुफ्तगू –

आग का वाकिया जब नमरूद बादशाह को मालूम हुआ तो उसने हज़रत इब्राहीम (अ०स०) को अपने दरबार में बुलाया और अल्लाह तआला के बारे में पूछा तो इब्राहीम (अ०स०) ने कहा – मेरा रब वो है, जो जिंदा करता है और मारता है | जवाब में उसने कहा – मैं भी जिंदा करता हु और मारता हूँ, चुनांचे उसने हुक्म दिया के जेल से दो आदमियों को लाया जाये और दोनों को सज़ा ए मौत का फरमान था  | नमरूद ने उनमे से एक को मौत का हुक्म दिया और एक को रिहा कर दिया | इससे उसने ये साबित करना चाहा के वह भी जिंदा कर सकता है और मार सकता है |

इसपर हज़रत इब्राहीम (अ०स०) ने फ़रमाया – बेशक अल्लाह सूरज को मशरिक से लाता है तू उसको मगरिब से ले आ इसपर काफिर बादशाह हैरान रह गया और उसका सर झुक गया | सिवाए इबरत पकड़ने के उसने हज़रत इब्राहीम (अ०स०) को शहर छोड़ने कर जाने को कहा |

 

आप (अ०स०) का निकाह –

इन सब के बाद आप ने शहर बाबिल से हिजरत कर के मुल्के शाम के हर्रान नामी बस्ती में मुकीम हुए और अपने चचा हारान की बेटी हज़रत सारा (अ०स०) से शादी की |

 

सितारा परस्त को इब्राहीम (अ०स०) की दावत  –

हर्रान के लोग बुत परस्त नही थे बल्कि सितारों की पूजा किया करते थे | जब इब्राहीम (अ०स०) ने देखा की ये सितारों की परस्तिश करते हैं तो इरादा किया के उनको बताएँगे के सितारों की पूजा करना बातिल है |

चूंके वे लोग सितारा परस्त थे इसलिए उनकी इबादत का वक़्त रात का होता था | चुनांचे इब्राहीम (अ०स०) ये दिखाने के लिए के उनकी इबादत बातिल है, एक रात अल्लाह ने असमान के दरवाज़े और परदे  खोल दिए तो आप (अ०स०) चाँद, सितारे और असमान की सलतनत को देखा

हज़रत इब्राहीम (अ०स०) एक रात  बस्ती वालों(सितारा परस्त)  के साथ निकले, अचानक एक सितारा तुलु यानी निकला जो देखने में खुबसूरत और उसकी चमक दमक बहुत थी, आप (अ०स०) ने बतौरे मज़ाक से कहा – ये मेरा रब है | फिर जब कुछ देर बाद सितारा गुरुब हो गया तो कहने लगे ये तो गुरुब हो गया है, ये रब कैसे हो सकता है जो छुप जाये पस मैं गुरुब होने वाले को पसंद नहीं करता |

अगले रोज़ (रात ) फिर सब लोगों  के साथ निकले तो चाँद को देखा, ये शक्ल सूरत में सितारों से ज्यादा खुबसूरत और रोशन था लेकिन जब वह भी गुरुब हो गया तो इब्राहीम (अ०स०) कहने लगे –  अगर मेरे रब ने हिदायत नहीं की तो मैं गुमराह लोगों में शामिल हो जाउंगा | ए अल्लाह ! तू कहाँ है मेरी रहनुमाई फरमा | इन बातों से आप (अ०स०) उन लोगों की रहनुमाई फरमा रहे थे ताके वह गौर करे|

फिर जब दिन में सूरज तुलु हुआ तो आप कहने लगे ये मेरा रब है , ये तो सबसे बड़ा है, फिर उनके तरह मुतावाजेह हो कर कहा – तुम रात को छोटे – छोटे रब की पूजा करते हो क्यों ना इस एक ही बड़े रब की पूजा करो | लेकिन जब वह भी गुरुब हो गया तो कहने लगे मैं तो तुम्हारे शिर्क से बेज़ार हूँ, ये माअबुद कैसे हो सकते हैं इनमे तो तब्दीली आती रहती है |

फिर अपने कौम की तरफ मुखातिब होकर कहा – मैं अपना रुख उसकी तरफ करता हु जिसने असमानों को यक्सू होकर पैदा किया और मैं शिर्क करने वालों में से नहीं हु | फिर भी वे लोग नहीं माने |

 

मिस्र के लिए हिज़रत –

जब इतना समझाने के बावजूद ईमान ना लाये तो हज़रत इब्राहीम (अ०स०) ने दुबारा मिस्र के लिए हिजरत की, वहां के बादशाह को खबर मिली के एक शख्स हिजरत करके आया है और उसके साथ एक औरत है जो बेहद हसीन व जमील है, चुनांचे उसने अपने कारिंदे को भेजा के उस औरत को मेरे पास ले आ और साथ ही उससे पूछना के उसके साथ जो आदमी है वह कौन है ? अगर वह उसका खाविंद हो तो उसे क़त्ल कर देना |

इधर अल्लाह ने हज़रत इब्राहीम (अ०स०) को वही भेजी, फिर उन्होंने हज़रत सारा (अ०स०) से कहा – अगर वे तुमसे पूछे के ये आदमी कौन हैं, तो तुम कहना ये मेरे भाई हैं | फिर आप  (अ०स०) बोले –ए सारा ! इस सर-ज़मीन पर मेरे और तेरे सिवा कोई मोमिन नहीं है इस लिहाज़ से हम दोनों दीनी भाई –बहन हैं |

फिर बादशाह ने इब्राहीम (अ०स०) को तलब किया और पूछा ये औरत कौन है ? आप ने फ़रमाया ये मेरी बहन है |

नोट –

तीन मक़ामात पर हज़रत इब्राहीम (अ०स०) ने अल्लाह के दीन की खातिर तौरिया फ़रमाया (तौरिया का मतलब होता है के वाकिया कुछ और हो लेकिन कोई शख्स किसी ख़ास मकसद के लिए उसे दो माअनी वाले अलफ़ाज़ के साथ इस अंदाज़ में बयान करे के सुनने वाला उस वाकिया को न समझ सके बलके उसका ज़ेहन खिलाफे वाकिया के तरह चला जाये )

तीन मवाक़े पर तौरिया फ़रमाया वो ये हैं –

(1) मेले के गरज से उन लोगों से कहा था के मैं बीमार हु |

(2) जिस बुत के गले में कुल्हाड़ा था, वहां आप ने फ़रमाया था ये काम इस बड़े बुत का है |

(3) और ये के सारा (अ०स०) दीनी बहन क़रार दिया |

 

ज़ालिम बादशाह की बुरी नियत और अंजाम –

उस ज़ालिम बादशाह ने सारा (अ०स०) को अपनी गिरफ्त में ले लिया, जब सारा (अ०स०) को मालूम हुआ के वह बादशाह बदकार शख्स है तो अल्लाह से दुआ किया –

ए अल्लाह ! तुझे मालूम है मैंने तुझ पर और तेरे नबी पर ईमान लाई हूँ और अपने जिस्म को अपनी खाविंद के सिवा सबसे महफूज़ रखा है, लिहाज़ा आप इस काफिर को मुझपर मुसल्लत ना कीजिये |

चुनांचे जब उस  बादशाह ने सारा (अ०स०) को पकड़ने के लिए हाथ बढाया तो उसका हाथ शल हो गया और अपनी जगह पर जम गया | वो चीखने – चिल्लाने लगा, बड़ी कोशिश की लेकिन हाथ को हरकत न दे सका | ये सब देख कर सारा (अ०स०) खौफ़जदाह हो गईं और सोचा के अगर ये मर गया तो इसका इल्जाम मुझपर ही होगा | चुनांचे आपने फिर से दुआ की जिसके वजह से उसका हाथ ठीक हो गया |लेकिन वह फिर भी ना माना और फिर हाथ हज़रत सारा (अ०स०) के तरह बढाया | दूसरी बार भी आपने दुआ की और दोबारा उसका हाथ जम गया और फिर आपके दुआ से ठीक हुआ | वह ज़ालिम फिर भी ना माना और तीसरी बार उनके तरफ़ अपना हाथ बढाया, इस बार भी उसका हाथ जम गया | अब वह सारा (अ०स०) से कहने लगा – अबकी बार अगर तू इस मुसीबत से निजात दिलाएगी तो मैं तुझे छोड़ दूंगा और कभी तेरे आड़े नहीं आउंगा | चुनांचे सारा (अ०स०) ने अल्लाह तआला से दुआ की और उसका हाथ ठीक हो गया और वह  अपने कारिंदे से बोला तुमने किसी इंसान को नहीं बलके किसी सरकश जिन्न को लाये हो |

फिर उनको इज्ज़त व इकराम के साथ आज़ाद कर दिया और उनकी खिदमत के लिए अपनी बेटी हाजरा  को साथ कर दिया |

इब्राहीम (अ०स०) ने  वहां से भी हिजरत की और फ़लीस्तीन में रिहाइश व़जीर हुए | वही ज़िन्दगी गुज़रने लगे | इब्राहीम के साथ हज़रत लूत (अ०स०) भी साथ रहते थे | इब्राहीम (अ०स०) ने हज़रत लूत (अ०स०) को सदुम की तरफ़ भेजा जहाँ के लोग सरकश और बद्दीन हो हुके थे |

 

हज़रत इब्राहीम (अ०स०) की वफात –

हज़रत इब्राहीम (अ०स०) ने कुल 175 साल की उमर में वफात पाई | आप से पहले हज़रत हाजरा (अ०स०) ने वफात पाई | और हज़रत सारा (अ०स०) 127 साल की उम्र में वफात पाई |

 

हज़रत इब्राहीम के साथ – साथ हज़रत लूत (अ०स०), हज़रत इस्माईल (अ०स०) और हज़रत याकूब (अ०स०) का क़िस्सा जुड़ा है लेकिन एक ही पोस्ट में लिखना मुमकिन नहीं इसलिए इन तीनों हजरात का क़िस्सा अलग – अलग पोस्ट में बयान किया जायेगा | इंशाअल्लाह

 

दीन की सही मालूमात  कुरआन और हदीस के पढने व सीखने से हासिल होगी |(इंशाअल्लाह)

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दुआ की गुज़ारिश

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