QASAS UL ANBIYA

Hazrat Saleh a.s ka Qissa – क़िस्सा हज़रत सालेह (अ०स०)

بِسمِ اللہِ الرَّحمٰنِ الرَّحِيم

शुरू अल्लाह के नाम से जो सब पर मेहरबान है बहुत मेहरबान है

 

कौम ए आद की हलाकत के बाद, हज़रत हूद (अ०स०) के साथ जो लोग महफूज़ रहे, उन्ही की नस्लो को कौम ए समूद कहते हैं | अल्लाह तआला ने हज़रत सालेह (अ०स०) कौम ए समूद में मबुस फ़रमाया

अल्लाह तआला का इरशाद है –

” व इला समुद अखाहुम सालिहा० ” 

” हमने समुद कौम की तरफ उनके भाई सालेह को भेजा “

 

कौम ए समुद की तामीर करदा  मकान 

कौम समुद –

कौम आद की तरह समुद कौम भी पहाड़ों को काटकर खुबसूरत इमारत बनाने में माहिर थी,ये हुनर उन्हें विरासत में (कौम ए आद) से मिली थी | अपने इस हुनर के घमंड और शैतान के वस्वसे में  आकर कौम ए समुद शरकाश और बुतपरस्ती में मुबतला हो गई |  फिसको फुज़ुर का दौर आम हो गया तब अल्लाह तआला ने हज़रत सालेह (अ०स०) को उस कौम की तरफ भेजा |

तर्जुमः

और तुम ये हालत याद करो के अल्लाह तआला ने तुम को आद के बाद जानशीन बनाया और तुमको ज़मीन पर रहने का ठिकाना दिया के नर्म ज़मीन पर महल बनाते हो और पहाड़ों को तराश – तराश कर उन में घर बनाते हो, सो अल्लाह तआला की नेमतों को याद करो और ज़मीन में फसाद मत फैलाओ

 

आप (अ०स०) की दावत –

नबूवत मिलने से पहले भी आप (अ०स०) बहुत इल्म वाले थे और एक ऊँचे घराने से थे,अपने मामलात में लोग उनसे मशवरे लिया करते थे |

जब आप (अ०स०) कौम को एक अल्लाह पर ईमान लाने और उसके सिवा किसी और की इबादत न करने की दावत दी, तो उनका साथ छोड़ दी और उनकी बात मानने से साफ़ इनकार कर दिया | उनके इनकार के बावजूद भी आप मुसल्सल दावत देते रहे और एक अल्लाह की तरफ बुलाते रहे |

सिर्फ चंद गरीब व कमज़ोर लोग ही आप पर ईमान लाये बाकी सब मुन्किर हुए |

 

कौम के सरदारों का मुतालबा –

हज़रत सालेह (अ०स०) से कौम समुद के सरदारों ने कहा –

अगर तू सच्चा है तो कोई मोजज़ा ले आ लेकिन वो मोजज़ा हमारी मर्ज़ी के मुताबिक़ हो, इस सूरत में हम ज़रूर इमाम ले आयेंगे, आप एसा करें के पथरीली चट्टान से एक 10 माह की हामला ऊंटनी निकाल लायें, उसका  रंग सुर्ख हो | सालेह (अ०स०) से ये मुतालबा करके वो सरदार लोग अलग बैठ गए और मज़ाक उड़ाने लगे |

 

अल्लाह तआला की कुदरत से ऊंटनी का पहाड़ से निकलना –

एक दिन सब लोग चट्टान के करीब जमाह हुए, फिर हज़रत सालेह (अ०स०) ने अल्लाह तआला से दुआ की –

ज़मीन पर ज़लज़ला तरी हुआ, उनकी आँखों के सामने चट्टान फटी और उससे वैसी ही ऊंटनी निकली जैसा के उनका मुतालबा था | उन्होंने अपनी ज़िन्दगी में एसी ऊंटनी पहले कभी न देखि थी, उसमे तमाम सिफात मौजूद थी जिनका ज़िक्र उन लोगों ने किया था |

फिर सालेह (अ०स०) ने फ़रमाया – लोगो सुन लो, एक दिन ये ऊंटनी पानी पीयेगी और एक दिन तुम पियोगे  | तुम में से कोई इसे तकलीफ़ न पहुचाये वरना अल्लाह का बदतरीन अज़ाब तुम पर नाजिल होगा |

 

ऊंटनी का क़त्ल कर दिया जाना –

कौम के सरदारों ने आपस में मशवरा किया के –

ये ऊंटनी हमारा सारा पानी पी जाती है और हमारे जानवर इससे खौफज़दा रहते है, वगैरह  तो क्यों न इससे छुटकारा पाया जाये |

आखिर उन्होंने एक आदमी मुन्तखब किया, जो बहुत बदबख्त था और उसका नाम उदार था  | उसके साथ उसका एक और साथी था | ये दोनों ऊंटनी को क़त्ल करने के लिए तैयार हो गए |

एक रोज वे बदबख्त ऊंटनी के इंतज़ार में बैठा, रोज के मामूर के मुताबिक ऊंटनी जब चट्टान से बाहर निकली तो अचानक वे हमला के लिए आगे बढे, उदार ने तीर से ऊंटनी के रान में मारा जिससे ऊंटनी की रान की हड्डी टूट गई और वो नीचे गिर गई फिर आगे बढ़कर ऊंटनी की कोचे काट दी यानी उसे मार डाला | ऊंटनी का एक बच्चा था, उसको भी उस बदबख्त ने मार दिया |

 

अल्लाह का अज़ाब –

ऊंटनी को क़त्ल करने के बाद, सालेह (अ०स०) ने उन नाफर्मानो से कहा –

अच्छा तुम तीन दिनों तक अपने घरों में रह सह लो ये वादा झूठा नही है | वो सालेह (अ०स०) की बातों रद्द करते हुए बोले के जिन अज़ाबों का तुम हमसे वादा कर रहा है अगर सच्चा है तो हम पर नाजिल कर दे |

कौम के सरदारों ने मशवरा किया के आज रात सालेह (अ०स०) को भी मार देंगे | सालेह (अ०स०) का घर पहाड़ी पर था, ये लोग उपर चढ़ ही रहे थे के ज़मीन हरकत करने लगी, एक चट्टान लुड़कती हुई आई और उनको पीस कर रख दिया | अज़ाब का आगाज़ हो चूका था |

हज़रत सालेह (अ०स०) अपने साथी को लेकर उस बस्ती से बाहर निकल  गए | सुबह हुई तो लोगों ने देखा के उनके चेहरे जर्द पड़ चुके थे, सब रोने लगे क्युकि अज़ाब के आसार नज़र आने लगे थे, दुसरे दिन उनके चेहरे आग की तरह सुर्ख हो गए और तीसरे दिन उसके चेहरे काले सियाह हो गए |

फिर ज़मीन हरकत करने लगी और वे लोग अपने घरों में ओंधे पड़े रह गए  और असमान से गाजबनाक चीखें आने लगी जिससे उनके भेजे फट गए | एक ही लम्हे में सब के सब ढ़ेर हो गए |

 

हज़रत सालेह (अ०स०) की वफात –

हरत सालेह (अ०स०) अपने साथी जो ईमान ले आये थे, उनके साथ फिलिस्तीन आ गए और वहीँ रमलला नामी जगह पर रहे और वही आप की वफात हुई |

 

दीन की सही मालूमात  कुरआन और हदीस के पढने व सीखने से हासिल होगी |(इंशाअल्लाह)

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दुआ की गुज़ारिश 

 

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