NAMAZ

Nafl Namaz ki fazilat – नफ्ल नमाज़ के नाम

 

بِسمِ اللہِ الرَّحمٰنِ الرَّحِيم

     ” शुरू अल्लाह के नाम से जो सब पर मेहरबान है बहुत मेहरबान है

 

नफ़िल नमाज़ क्या है –

हर मुसलमान मर्द औरत पर पांच वक्तों का नमाज़ पढना फ़र्ज़ है, फ़र्ज़ कहते हैं जिसको पढना ज़रूरी है और ना पढ़ी तो गुनाहगार होगा | फ़र्ज़ नमाज़ के अलावा सुन्नत और नफ्ल नमाज़ भी हदीसों से मालूम होता है |

सुन्नत दो तरह के होते हैं –

(1) सुन्नत ए मुक्केदा – जिसको नबी करीम (स०अ०) ने हमेशा पढ़ा करते थे |

(2) सुन्नत – जिसको आप (स०अ०) ने कभी पढ़ी और कभी नहीं |

नफ्ल नमाज़ –

वो नमाज़ जिसकी पढने की फ़ज़ीलत और बरकात का ज़िक्र कसरत से अहादीसों में आई है | लेकिन अगर किसी वजह से ना पढ़ सके तो कोई गुनाह न होगा |

 

चंद नफ्ल नमाजें  और उनकी फ़ज़ीलत –
(1) नमाज़े इशराक़ –

” हज़रत बुरैदा (रज़ी०) की रिवायत है के रसूल अल्लाह (स०अ०) को ये इरशाद फरमाते हुए सुना के बदन में 360 जोड हैं,फिर आदमी पर लाजिम है के अपने हर जोड़ के बदले सदक़ा व खैरात करे | सहाबी (रज़ी०) ने कहा – हुजुर (स०अ०) कौन है जो इसकी ताक़त राखे ? आप (स०अ०) ने फ़रमाया – दो रकातें नमाज़े इशराक़ की पढनी तुझ पर काफी है यानी सदके की अख्तियार नही रहेगी (दो रकात, 360 जोड़ का सदक़ा है ) “  (अबू दाऊद )

” हज़रत अनस बिन मालिक (रज़ी०) से रिवायत है कि रसूल अल्लाह (स०अ०) ने इरशाद फ़रमाया – जो शख्स फज़र की नमाज़ जमाअत से पढता है, फिर अफताब निकलने तक अल्लाह तआला के ज़िक्र में मशगुल रहता है फिर दो रकअत नफ्ल पढता है तो उसे हज और उमरह का सवाब मिलता है | हज़रत अनस (रज़ी०) फरमाते हैं कि नबी करीम (स०अ०) ने तीन मर्तबा इरशाद फ़रमाया – कामिल हज और उम्रे का सवाब, कामिल हज और उम्रे का सवाब, कामिल हज और उम्रे का सवाब मिलता है “ (तिरमिज़ी)

 

इशराक़ पढने का वक़्त –

सूरज तुलु होने के 20 या 25 मिनट बाद से लेकर जवाह कुबरा तक इसराक का वक़्त होता है |

 

रकात –

इशराक़ की नमाज़, कम से कम दो और ज्यादा से ज्यादा चार रकअत हैं |

 

(2) नमाज़े चाश्त –

” हज़रत अबू हुरैरह (रज़ी०) से रिवायत है कि रसूल अल्लाह (स०अ०) ने इरशाद फ़रमाया – जो चाश्त की दो रकअत पढने का अहतमाम करता है उसके गुनाह माफ़ कर दिए जाते हैं, अगरचे समंदर के झाग के बराबर हों “  (इब्ने माजा )

 

चाश्त का वक़्त –

चाश्त का वक़्त  अफताब बुलंद होने से लेकर ज़वाल तक है | बेहतर है के चौथाई दिन के चढ़ते ही पढ़ लें या इशराक़ के फ़ौरन बाद ही पढ़ लें |

 

रकात –

चाश्त की नमाज़, कम से कम दो और ज्यादा से ज्यदा बारह रकअत हैं |

 

(3) नमाज़े अव्वाबीन –

 ” हज़रत अबू हुरौरह (रज़ी०) से रिवायत है कि रसूल अल्लाह (स०अ०) ने इरशाद फ़रमाया – जो शख्स मगरिब की नमाज़ के बाद छः रकआतें इस तरह पढ़ता है कि उसके दरमियान कोई फुजूल बात नही करता तो उसे बारह साल की इबादत के बराबर सवाब मिलता है “ (तिरमिज़ी)

 

अव्वाबीन का वक़्त –

मगरिब के फ़र्ज़ नमाज़ और सुन्नत ए मुअक्कदा पढने के बाद है |

 

रकात –

मगरिब के बाद दो रकअत सुन्नातें मुअक्कदा के अलावा चार रकअत नफ्लें और पढ़ी जाएं तो छः हो जायेंगी | बाज़ उलमा के नज़दीक ये छः रकअतें, मगरिब की दो तकअत सुन्नत ए मुअककदा के अलावा हैं |

 

(4) नमाज़े तहज्जुद –

अल्लाह तआला का इरशाद है – मुत्तकी लोग बागों और चश्मों में होंगे उनके रब ने उन्हें जो सवाब अता किया होगा वह उसे खुशी – खुशी ले रहे होंगे | वे लोग इससे पहले यानी दुनिया में नेकी करने वाले थे | वे लोग रात में बहुत ही कम सोया करते थे ( यानी रात का अक्सर हिस्सा इबादत में मशगुल रहते थे ) और शब् के आखिरी हिस्से में इस्ताग्फार किया करते थे | (सुरह – जारियात )

” हज़रत अबू उमामा बाहिली (रज़ी०) से रिवायत है कि रसूल अल्लाह (स०अ०) ने इरशाद फ़रमाया – तहज्जुद ज़रूर पढ़ा करो | वह तुम से पहले नेक लोगों का तरीका रहा है, उससे तुम्हे अपने रब का कुर्ब हासिल होगा, गुनाह माफ़ होंगे और गुनाहों से बचे रहोगे(मुस्तदरक हाकिम)

 

तहज्जुद का वक़्त –

तहज्जुद का वक़्त ईशा के वक़्त से शरू होकर सुबह सादिक तक होता है,अफज़ल यह है के रात के आखरी वक़्त में पढ़े यानी सुबह सादिक से थोडा देर पहले का वक़्त |

 

रकात –

तहज्जुद नमाज़, कम से कम चार और ज्यादा से ज्यादा बारह रकआतें हैं |

 

(5) नमाज़े इस्तेखारा –

हदीसों में आया है कि जब कोई शख्स किसी काम का एरादा करे तो दो रकात नफिल पढ़े जिसकी पहली रकात में सुरह फ़ातिहा के बाद सुरह काफेरुन और दूसरी रकात में सुरह फ़ातिहा  के बाद सुरह इखलास  पढे |

 

(6) नमाज़े हाजत –

जब किसी को कोई हाजत अल्लाह तआला से हो या ई काम किसी बन्दे से हो या मुश्किल पेश आये तो खूब एहतेयात से अच्छी बजू करके दो या चार रकात नफिल पढ़े और दुआ करे इंशाअल्लाह दुआ कुबूल होगी और हाज़त पूरी होगी क्यों के अल्लाह रब्बुल इज्ज़त ने नमाज़ के जरिये से ही हाज़त पूरी होने का वादा किया है |

 

दीन की सही मालूमात  कुरआन और हदीस के पढने व सीखने से हासिल होगी |(इंशाअल्लाह)

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